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विलुप्त होने की कगार पर बैगा जनजाति

रामबिहारी पांडेय, सीधी.

देश में अन्य वर्गो की जनसंख्या जितनी तेजी से बढ़ रही है उतनी ही तीव्रता से आदिवासियों के नाम से जाने जाने वाले बैगा जाति के लोगो की संख्या घटती जा रही है। विलुप्त प्रजाति में इस समुदाय को शामिल कर केन्द्र व राज्य सरकार ने इनके उत्थान के लिये कई योजनाएं लागू कर रखी है लेकिन मध्यप्रदेश के सीधी जिले में 22 हजार से ज्यादा बैगा जाति के लोगो तक एक छोटी से विकास की किरण नही पहुंच सकी है। जब भी मांग उठती है तो सर्वे कराकर मांग करने वालो के मुंह बंद कर दिये जाते है लेकिन जब जमीनी स्तर पर उनके दशा व दिशा को बदलने की बात आती है तो फिर सभी अपने-अपने सिर पर से दोष उतार कर शासन पर फेक देते है। ऐसी ही उपेक्षाओं का दंश सीधी जिले के आदिवासी झेल रहे है इनके नाम पर आने वाली राशि से अधिकारियों की दशा व दिशा बदल रही है लेकिन इन गरीबो की दशा में आज भी कोई सुधार होता नजर नही आ रहा है। 

 विलुप्त होने की कगार पर बैगा जनजाति
मध्यप्रदेश के सीधी जिले में बैगा जनजाति की जनसंख्या बची है सिर्फ 22 हजार

कहने के लिये प्रदेश सरकार ने बैगा परियोजना लागू कर रखी है, जिसमें प्रदेश के आधा दर्जन जिलों को भारी भरकम बजट उपलब्ध कराकर परियोजना की शुरूआत कर रखी है। पहले सीधी जिले को भी इस परियोजना में जोड़कर रखा गया था लेकिन राजनैतिक दखलनदाजी के चलते इस परियोजना की फाइल कार्यालयों में धूल फांक रही है। एक बार यदि नजर इनके जनसंख्या पर दौड़ाई जाय तो पूरे संसदीय क्षेत्र की आबादी का एक बीसवां अंक भी नही छू पाता। संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं की संख्या जहां 18 लाख है, वहीं सीधी के आदिवासियों की संख्या महज 22 हजार को ही पार कर पा रही है। कुल मिलाकर यह कह दिया जाए कि सीधी जिले में आदिवासी बैगा अल्प संख्यक है तो अतिशयोक्त नही होगा। इसके वावजूद इनके उत्थान के लिये प्रदेश सरकार कोई समुचित कदम नही उठा रही है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से भी मिली निराशा

बैगाओं की उम्मीद वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर टिकी थी, लेकिन चार माह गुजर जाने के वावजूद कोई समुचित कदम न उठाये जाने के कारण इस समुदाय के लोगो में निराशा की छाप दिखने लगी है। बता दें कि आदिवासी बाहुल्य जिले में बैगा जाति के लोगों को अभी भी उनके वास्तविक लाभ नही मिल पा रहे है। हलाकि वर्ष 2001 व 2012 में इसका सर्वे हुआ था। देश में कुल 14.51 प्रतिशत इस वर्ग के लोग निवासरत है। जनसंख्यानुसार मप्र में कुल जनसंख्या का 20 से 30 प्रतिशत इस जनजाति के लोग निवास कर रहे है। हलाकि प्रदेश में कुल 43 जनजातियां निवासरत है जिसमें से तीन जाति विशेष पिछडे रूप मानी जाती है जिसमें बैगा,भरिया, शहरिया है। भारत सरकार की मान्यता सूची में ये जातियां कृषि में पिछडे हुये है व साक्षरता की कमी है अत्यंत पिछडे व दूर दराज क्षेत्र में निवासरत है। लेकिन आज भी मौलिक सुविधाओं से वंचित है, यदि केन्द्र व राज्य सरकार से बराबर इन पर निगाह रखी जा रही है तो फिर भी इनका प्रचुर मात्रा में विकास नही हो पा रहा है। आज भी ये कई शासन की आवश्यक सुविधाओं से वंचित है। जिले में बैगा विकास प्रोजेक्ट का भी संचलन होने के बाद अभी भी इस वर्ग के लोग अहम सुविधायें पाने से वंचित है।


 विलुप्त होने की कगार पर बैगा जनजाति
शिक्षा, सड़क, पेयजल से भी महरुम हैं बैगा
सर्वे अनुसार जिले में सर्वेक्षित परिवार के विषय में बात करें तो जिले के पांचों विकास खण्डों के 191 गांवों में 7 हजार 271 परिवार रहते है। जिनकी कुुल जनसंख्या 28 हजार 776 है। जिनके शैक्षणिक स्तर न्यूनतम है प्रदेश में अनूपपुर, जबलपुर,कटनी,सतना, बालाघाट, उमरिया, डिंण्डोरी में निवासरत है। प्रदेश में कुल 1205 गांवों में 41 हजार 379 परिवार निवासरत है और 83 प्रतिशत आदिवासियों के पास विद्युत सुविधा,82 प्रतिशत पेयजल व सडक सुविधा व 45 प्रतिशत स्वास्य सुविधा उपलब्ध हो पा रही है। जो कि आज के समय में पर्याप्त नही मानी जा सकती आज भी कृषि, मजदूरी व वनोपज पर पूरा बर्ग टिका हुआ है जिन्हे शासकीय योजना के लाभ का इंतजार है। ये है इनकी स्थिती यदि इनकी स्थिती पर गौर करें तो 41 हजार 379 में से 1 हजार परिवार कृषि पर आधारित है जबकि 15 हजार 760 परिवार मजदूरी कर रहा है जबकि 18 हजार 752 परिवार कृषि,मजदूरी में लगा हुआ है। जबकि 12 हजार 162 परिवार वनोपज के सहारे जीवन यापन कर रहा है जिससे आज भी मौलिक सुविधायें मुहैया नही हो पाती है। हलाकि जो आंकडे उपलब्ध है उसके अनुसार 41 हजार 379 परिवार में से 17 हजार 593 के पास कृषि भूमि है, जिनमें मात्र 2 हजार 530 हेक्टेयर सिंचित भूमि है। इसी तरह 9 हजार 114 हेक्टेयर भूमि रकवा असिंचित है। जिले के कई गांव ऐसे है जो मुख्यालय के पहुंच से काफी दूर है। ये है इनकी समस्यायें आज भी अधिकांश इस वर्ग के लोग आवासीय सुविधा से वंचित है। जिनके पास पक्का आवास नही है बांस लकडी के बने आवासों में जीवन यापन कर रहे है। इन आदिवासी अंचलों में विद्यालय की आवश्यकता है। घर स्वास्य सुविधाओं की कमी से जूझ रहे है जहां बिजली, पानी जैसी मौलिक सुविधायें उपलब्ध नही हो पाती है। परंपरागत ढांचे से आज भी खेती कर रहे है जिससे लाभ नही हो पा रहा है। इनके पास जीवन यापन के लिये सिर्फ मजदूरी का ही सहारा रहता है। शिक्षा व रोजगार महत्वपूर्ण आवश्यकता मानने के बाद ही अभी भी विकास की मुख्यधारा से वंचित है। मौलिक सुविधाओं से जूझ रहे इस समुदाय को महत्वपूर्ण पहल की आवश्यकता है। जिससे कि इनका सर्वांगीण विकास हो सके लेकिन जनप्रतिनिधियों की उपेक्षाओं के चलते इन तक विकास की एक किरण भी नही पहुंच पा रही है। आज भी उनकी दशा आजादी के पूर्व जैसी ही नजर आ रही है न तो रहने के लिये मुकम्मल आवास है न खाने के लिये समुचित अनाज न पीने के लिये स्वच्छ पानी, उपचार की तो हालत और भी दयनीय है इन्हे प्रकृति के सहारे ही जीना पडृ रहा है।

बैगा जनजाति को बराबरी के प्रयास भी नाकाम
देश की विलुप्त हो रही वैगा प्रजाति को बराबरी का दर्जा देने के लिहाज से शुरू की गई योजना अधिकारियों के उदाशीनता की भेंट चढ़ रही है। प्रयास के बाद देश में प्राधिकरण तो लागू कर दिया गया लेकिन सीधी सिंगरौली में निवासरत बैगाओं को प्रदेश सरकार की चलाई गई योजनाओं को पाने के लिये दर-दर की ठोकरे खानी पड़ रही हैं संगठन द्वारा लड़ाई लड़े जाने के वाद सीधी जिले को वैगा विकास प्राधिकरण की सूची में सामिल कर लिया गया। बजट का आवंटन ना होने के कारण इनकी दशा व दिशा वदलने की कोई प्रशासनिक पहल नही की जा रही है। सिंगरौली जिले को अभी भी प्राधिकरण में सामिल नही किया गया है जवकि आंकडो पर गौर करें तो डिंडोरी, शहडोल, सहित अन्य जिलों की तरह सीधी सिंगरौली में भी बैगा जाति के लोग रहते है, लेकिन इनके उत्थान के लिये कोई पहल होती नही दिख रही है। कहने के लिये तो आदिवासी विकास प्राधिकरण है इसके प्रदेश सदस्य भी सीधी जिले के एक आदिवासी को बनाया गया है लेकिन आजादी की पूर्व की स्थिति ही नजर आ रही है

पूर्व मंत्री के जिले में नही पहुंची विकास की किरण
जिले के ही नही, बल्कि पूरे प्रदेश के आदिवासियों के नेता माने जाने वाले पूर्व मंत्री जगन्नाथ सिंह के ग्रह जिला सिंगरौली में भी बैगाओं के उत्थान की एक छोटी सी किरण नही पहुंच सकी है। खास यही कि, सिंगरौली जिले के अलावा सीधी के बैगा समुदाय के लोंगों ने मुलाकात कर योजना लागू करने की मांग की थी, प्रभारी मंत्री ने प्रदेश सरकार को पत्र भी लिखा था। उनका यह पत्र राज्य सरकार के मंत्रालय में ही बीते तीन वर्षो से भटक रहा है।

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