अबकी महाराष्ट्र का विधानसभा चुनाव सिर्फ विचारों और लुभावने नारों के भरोसे नहीं लड़ा जायेगा, बल्कि इस बार के सियासी दंगल में हर खेमे का पहलवान नए-नए दाव-पेंचों के साथ-साथ मजबूत लंगोट के साथ अखाड़े में उतरेगा।
महाराष्ट्र में भाजपा के बढ़ते जनाधार से बढ़ती विरोधियों की टेंशन
क्योंकि, इस चुनावी कुश्ती में विरोधी को पछाड़ने के लिए ताकत नहीं, एक-दूसरे की लंगोट उतारने के हुनर का ज्यादा इस्तेमाल होगा। इस कड़ी में कुछ दल नए नाड़ेबाजों को अपने खेमे में शामिल कर रहे है, तो कुछ पुराने पहलवानों की ही चड्ढी मजबूत करने में जुटे है। शिवसेना नए पहलवानों की सूची में उन लोगों का गृह प्रवेश करा रही है, जो कल तक विरोधी खेमे में बैठकर शिवसेना को चुनौती देते थे। इनमे अपने जमाने के धुरंधर पहलवान रहे राम पंडागले, नारायण राणे के खास समर्थक रहे रविन्द्र फाटक, राकांपा के कोंकण केसरी दीपक केसरकर आदि शामिल है। यह सभी धुरंधर कांग्रेस-राकांपा छोड़ शिवसेना में भगवा पहने खड़े है। उधर कांग्रेस नारायण राणे को फिर एक बार गुड़ लगाने में सफल रही है। पार्टी ने राणे को चुनाव प्रचार अभियान का मुखिया बनाकर ऐसा काम किया है जैसे किसी, नाविक को सिंगल पतवार के भरोसे छेद वाली नाव देकर नदी में उतार दिया जाए। राणे के सामने चुनाव अभियान की कमान थामना सबसे बड़ी चुनौती है। उन्हें अपने ही विरोधियों से भरी एक रिसते हुए नाव को किनारे लगाना है। पिछले कुछ समय से नारायण राणे के विरोधी तेवर को देखकर कांग्रेस भी समझ गई थी, कि पार्टी डैमेज को रोकने के लिए सबसे अच्छा फार्मूला होगा, चोर को ही चौकीदार बना दिया जाए। कांग्रेस का यह फार्मूला कितना कारगर होगा, यह तो चुनाव परिणाम आने के बाद ही पता चलेगा, लेकिन इन सबसे अलग भाजपा नए कुश्तीबाजों को आयात करने के बजाय अपने पुराने मुक्केबाजों को ही खिला-पिलाकर मजबूत करने में जुटी है।
उत्तर भारतीयों की नई पहचान मोहित कांबोज
भाजपा पिछले कुछ महीनों से जमीनी स्तर पर संगठन को मजबूत करने में जुटी है। इस दिशा में उसने कांग्रेस के उस वोट बैंक में सीधे सेंध लगा दी है, जिस पर अब तक कांग्रेस अपना एकाधिकार समझती रही है। मुंबई की कुल करीब ढाई करोड़ जनसंख्या में अपनी 22 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाले उत्तर भारतीय समाज को भाजपा ने अपने साथ जोड़ने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। मुंबई भाजपा अध्यक्ष आशीष शेलार के नेतृत्व में भाजपा उत्तर भारतीय मोर्चा के अध्यक्ष मोहित कंबोज ने पिछले दिनों एक ही दिन में एक साथ 26 जनसम्पर्क कार्यालय की शुरुआत करके कांग्रेस को सकते में डाल दिया है। भाजपा की इस नई चाल ने कांग्रेस के उन नेताओं की नींद उड़ा दी है, जो अब तक हिंदी भाषियों का नेतृत्व कम ठेकेदारी ज्यादा करते थे। अकेले मुंबई में उत्तर भारतीयों की कुल जनसंख्या 50 लाख से अधिक है। मुंबई की कुल 34 विधानसभा सीटों में कई ऐसी सीटें है, जिनपर हिंदी भाषी मतदाताओं का एकाधिकार है। एक दिन में 26 जनसम्पर्क कार्यालय के खुलने की खबर को जानने का कौतुहल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भी मन में था। अपने मुंबई दौरे के दौरान उन्होंने भी इस बारे में भाजपा उत्तर भारतीय मोर्चा के अध्यक्ष मोहित कंबोज से सविस्तार जानकारी ली।
अब आधी सीटों पर भाजपा की दावेदारी
गोपीनाथ मुंडे के निधन के बाद भारतीय जनता पार्टी महाराष्ट्र में अपने को कुछ कमजोर जरूर महसूस कर रही है, लेकिन उसके बढ़ते जमीनी जनाधार ने पार्टी नेतृत्व को बल दिया है। राज्य की कुल 288 सीटों में अब तक भाजपा कुल 119 और शिवसेना 169 सीट पर चुनाव लड़ती रही है, लेकिन अबकी चुनाव में भाजपा आधी सीटों पर अपना दावा जाता रही है। एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार भाजपा को 288 में से 122 सीटों पर सफलता मिलाने की उम्मीद है। लोकसभा चुनाव में शिवसेना से ज्यादा सीट मिलने और बढ़ते जनाधार ने गठबंधन में भाजपा का दावा और भी मजबूत कर दिया है। भाजपा को 24 और शिवसेना को 18 सीटें मिली है। लोकसभा चुनाव में मोदी हवा के सामने कांग्रेस-राकांपा गठबंधन के 19 सांसद उड़ गए, जिनमें सुशील कुमार शिंदे, प्रिया दत्त, मिलिंद देवड़ा जैसे पुराने बरगद भी शामिल थे। कांग्रेस-राकांपा 25 सीटों से खिसककर 6 पर आ गई। 2009 के लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र से कांग्रेस के 17 और राकांपा के 8 सांसद थे। इसी तरह भाजपा-शिवसेना के पास 9 व 11 सदस्य थे। 2014 के चुनाव में राज्य की कुल 48 लोकसभा सीट में से भाजपा-शिवसेना की संख्या 41 हो गई, 1 अन्य भी भाजपा-सेना समर्थक है। कांग्रेस की जो दो सीटें जीतकर आई है, हिंगोली और नांदेड यह दोनों सीटें मराठवाड़ा की है। इसी तरह राकांपा की निर्वाचित सभी 4 सीटें पश्चिम महाराष्ट्र की है। हालांकि पश्चिम महाराष्ट्र को काफी पहले से ही शरद पवार का गढ़ माना जाता रहा है। इसके अलावा विदर्भ, उत्तर महाराष्ट्र, मुंबई, ठाणे व कोंकण में कांग्रेस-राकांपा का खाता तक नहीं खुला। अगर यही हाल आगामी विधानसभा में रहा तो, विधानसभा की 288 सीटों में से करीब 220 सीटें भाजपा-शिवसेना की झोली में जा सकती है।
अगर हम इतिहास की ओर देखें, तो यह सही है कि महाराष्ट्र पर कांग्रेस का वर्चस्व रहा है। महाराष्ट्र में अब तक हुए सत्रह मुख्यमंत्रियों में सिर्फ दो ही मुख्यमंत्री कांग्रेस पार्टी के अलावा किसी अन्य दल से हुए हैं। अगर बतौर मुख्यमंत्री 1978 के शरद पवार के पहले कार्यकाल को जोड़ लें, तो गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों की संख्या कुल तीन तक पहुंचती है। कांग्रेस पार्टी महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव में सिर्फ एक बार ही पराजित हुई है, 1995 में शिवसेना-भारतीय जनता पार्टी का गठबंधन सत्तारुढ़ हुआ था और यह सरकार पांच वर्षो के अपने कार्यकाल के पूरा होने तक चली थी। अगले तीन महीनों में, जब महाराष्ट्र में विधानसभा के लिए मतदान होंगे, स्थितियों में कोई उल्लेखनीय बदलाव होने की संभावनाएं नहीं हैं। केंद्र में कांग्रेस की सरकार नहीं है, लेकिन उसके विरुद्ध जनता की नाराजगी अभी भी बरकरार है।
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महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव परिणाम -2009
पार्टी जीत
भाजपा 46
शिवसेना 44
कांग्रेस 82
राकांपा 62
मनसे 13
निर्दलीय 24
अन्य 17
कुल सीटें 288