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खतरे में विरासत-धसक रही है अजयगढ़ की ऐतिहासिक घाटी

अरुण सिंह, पन्ना.

राजाशाही जमाने की गौरव गाथा को समेटे मध्यप्रदेश के पन्ना जिले की ऐतिहासिक अजयगढ़ घाटी अब बदहाली का शिकार है। घाटी में जल निकासी के लिए जो व्यवस्थायें की गई थीं, अनदेखी व समुचित देखरेख के अभाव में वे ध्वस्त हो चुकी हैं, फलस्वरूप घाटी का तेजी के साथ क्षरण हो रहा है। इस घुमावदार आकर्षक घाटी में पहाड़ से मिट्टी व चट्टाने धसककर सडक मार्ग पर आ रही हैं, जिससे हर समय दुर्घटनाओं की आशंका बनी रहती है। 

अजयगढ़ घाटी का विहंगम दृश्य
अजयगढ़ घाटी का विहंगम दृश्य
जल निकासी की प्राचीन व्यवस्थायें अवरूद्ध
अनदेखी के चलते संकट में है घाटी का वजूद 



उल्लेखनीय है कि लगभग डेढ़ सौ वर्ष पूर्व तत्कालीन पन्ना नरेश महाराजा रूद्रप्रताप सिंह द्वारा इस ऐतिहासिक घाटी का निर्माण कराया गया था। बताया जाता है कि पन्ना के सुप्रसिद्ध श्री बल्देव जी मंदिर व अजयगढ़ घाटी का निर्माण एक साथ हुआ था और निर्माण में खर्च भी बराबर आया था। राजाशाही खत्म होने के कई दशकों बाद तक भी इस मनोरम घाटी की खूबसूरती देखते ही बनती थी। घने जंगल व वनाच्छादित पहाडिय के बीच से निकली इस घुमावदार घाटी में जल निकासी के लिए इतनी शानदार व्यवस्थायें की गई थीं, कि बारिश का पानी कहां चला जाता था, पता ही नहीं चलता था। सडक मार्ग के दोनों तरफ अच्छी स्लोप वाली मजबूत नालियों के द्वारा बारिश का पूरा पानी घाटी से निकलकर पहाड़ी नालों में मिल जाता था, फलस्वरूप यह घाटी निर्माण के सौ वर्ष बाद भी मजबूती के साथ विद्यमान है। 

क्षरण के चलते जीर्ण-शीर्ण सुरक्षा दीवाल
क्षरण के चलते जीर्ण-शीर्ण सुरक्षा दीवाल
इसे दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि हम अपनी प्राचीन धरोहरों को बचाने व उनका संरक्षण करने के बजाय उनकी अनदेखी कर रहे हैं। यह प्राचीन धरोहर भी उपेक्षा और अनदेखी का शिकार है, जिससे इसका वजूद संकट में पड़ गया है। घाटी के मार्ग में निर्मित प्राचीन नालियां मलबे से पट चुकी हैं। क्षरण के कारण पहाड़ों की मिट्टी व पत्थर नालियों में भर गये हैं, जिससे जल निकासी की पूरी व्यवस्था ध्वस्त हो गई है। इस लापरवाही का यह परिणाम है कि पहाड़ों का जहां तेजी से क्षरण होने लगा है, वहीं घाटी में निर्मित सुरक्षा दीवालें भी नष्ट हो रही हैं। पहाड़ों के क्षरण का यह आलम है कि ऊंचाई से बड़ी-बड़ी चट्टाने लुड़क कर सडक मार्ग पर आ जाती हैं। नतीजे कभी भी भयावह हादसा घटित हो सकता है।
पन्ना जिले को पड़ोसी राज्य उत्तरप्रदेश के बांदा जिले से जोडन वाला यह प्रमुख मार्ग हैं। इस मार्ग पर चौबीसों घंटे आवागमन होता है, फिर भी घाटी के जीर्णोद्धार व देखरेख में शासन-प्रशासन द्वारा कोई रूचि नहीं ली जाती, जिससे घाटी जीर्ण-शीर्ण हो रही है। इस मार्ग से जब भी कोई पहलीबार निकलता है, तो यहां की प्राकृतिक मनोरम छटा व घाटी की निर्माण शैली को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाता है।

हैरतअंगेज है घाटी के निर्माण की कहानी
इस मनोरम घाटी के निर्माण की कहानी भी हैरतअंगेज और अविश्वनीय है। बताया जाता है कि तकनीकी कौशल से परिपूर्ण इस घुमावदार घाटी के निर्माण में खच्चरों की भूमिका सबसे अहम रही है। घाटी के मार्ग का निर्धारण खच्चरों के द्वारा ही किया गया था। तत्कालीन पन्ना नरेश महाराजा रूद्रप्रताप सिंह ने खच्चरों की पीठ में चूने की बोरियां लदवाकर बोरियों में छेद करके उन्हें इस पहाड़ पर छोडवा दिया था। खच्चर घने जंगल से होकर जिस मार्ग से गए, चूने की लाइन खिंचती चली गई और इसी नक्शे के आधार पर ही अजयगढ़ की घाटी का निर्माण हुआ।

निर्माण की तकनीक है बेमिसाल
अजयगढ़ घाटी के निर्माण की तकनीक को देखकर बड़े-बड़े इंजीनियर भी हैरत में पड़ जाते हैं। अत्यधिक ऊंचाई व घुमावदार मार्ग होने के बावजूद भी इस खतरनाक दिखने वाली घाटी में बहुत ही कम सडक दुर्घटनायें होती हैं। जबकि पन्ना - छतरपुर मार्ग वाली मड़ला घाटी, जिसमें इतने घुमाव व ऊंचाई नहीं है, फिर भी इस घाटी में आये दिन सडक हादसे होते हैं। तकनीकी जानकारों का कहना है कि यह घाटी के निर्माण कला का ही परिणाम है कि अजयगढ़ घाटी में सडक हादसे न के बराबर होते हैं।






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