रामबिहारी पाण्डेय, सीधी.
भारत से राजतंत्र गायब हुये भले ही 65 वर्ष बीत गए हों, लेकिन सीधी जैसे शहर में आज भी रसूखदारों की ही तूती बोल रही है। इनके अपने कानून बने हुये हैं, जिन पर प्रतिबंध लगाने की हिम्मत शासन प्रशासन के नुमाइंदे नही जुटा पा रहे हैं। हद तो यह है कि रसूखदारों ने अपनी करेंसिया भी जारी करना शुरू कर दिया है। यदि किसी ने इनके कानून का पालन नही किया या विरोध कर दिया तो फिर उस पर शामत आना तय है।
सबको पता है कि राजतंत्र में रसूखदार गरीबो को कर्ज देकर अपने अधीन कर लिया करते थे, वही कानून अब भी बना हुआ है। यह अलग बात है कि तरीके अलग खोज लिये गये हैं। पहले के रसूखदार अनाज के माध्यम से अपने अधीन करते रहे हैं, अब के रसूखदार रूपये पैसे का कर्ज देकर गरीबों को काबू कर रहे हैं। स्वयं का व्यवसाय स्थापित करने के बाद शासन द्वारा बनाये गये नियम कानून के अनुसार सामग्रियों का विक्र नही करते बल्कि उस सामग्री का दाम स्वयं निर्धारित करते है। यहां तक बात कुछ ठीक लगती है, लेकिन सामग्री उपलब्ध कराने के बाद उपभोक्ता द्वारा दिये गये भारतीय करेंसी के बदले इनके दुकान का नाम छपी करेंसी उपभोक्ता को थमा दी जाती है। ऐसा दौर बीते दो वर्ष से शहर के होटल व्यवसायी शुरू किये हैं, जो थमने का नाम नही ले रहा है। अब तो स्थिति यह हो गई है कि यदि कलेक्टर अथवा पुलिस अधीक्षक ही क्यो न इनके होटलो में जलपान करके भुगतान करे तो इन्हे अपनी करेंसी वापस करने में तनिक भी संकोच नही होगा। यह अलग है कि कलेक्टर एसपी इन होटलो में जलपान करने जाते ही नहीं।
यह 16 आने सच है कि आम जनता को इन रसूखदारो के जलवे का शिकार होना पड़ रहा है। ऐसा भी नही है कि इनकी इन करतूतों की जानकारी शासन प्रशासन को नही लग रही है। लग तो रही है पर इन पर हाथ डालने की हिम्मत प्रशासन नही जुटा पा रहा है। गौर किया जाय तो हर कार्य गैर कानूनी हो रहे है चाहे वह श्रम कानून के उल्लंघन की बात हो, चाहे करेंसी चलाने की बात हो, चाहे खाद्यान्न में मिलावटखोरी की बात हो। यहां हम बता दें जब पूरे प्रदेश में खोवे की मिलावटखोरी के खिलाफ धर पकड़ अभियान चल रहा था, तब भी यहां के होटल व्यवसायी मिलावटी खोवे को सीधी जैसे शहर में गोदामीकरण कराकर लाखों रूपये का मुनाफा कमा रहे थे। शासन को इस बात की जानकारी भी हुई थी, लेकिन पंगू खाद्य विभाग होटलो में पहुंचकर मिलावट देखने के बाद भी कार्रवाई नहीं कर सका। नतीजे में बेखौफ मिलावटखोर जब भी त्यौहारो की बारी आती है मिलावटी खोवा एकत्रित कर बेचने लगते हैं।
यह तो बात हो गई मिलावटी सिन्थेटिक मिठाइयों की, लेकिन चाय जैसे मामूली पेय पदार्थ में भी मिलावटखोरी करने से रसूखदार होटल व्यवसायी बाज नही आ रहे है। आलम यह हो गया है कि यदि इन दो तीन होटलो में लगातार चाय पी लिया जाए तो फिर अन्य जगहों की चाय आपको भाएगी नही, बल्कि वह घटिया लगने लगेगी। न जाने कौन सा अल्कोहल रसूखदार होटल व्यवसायी डाल रहे है इसका खुलासा खाद्य विभाग आज तक नही कर सका है। श्रम कानून उल्लंघन की बात की जाय तो छोटे-छोटे होटल व्यवसायी तो स्वयं ही सामग्रियां तैयार कर लेते है लेकिन रसूखदारो के होटलो में दर्जनो श्रमिक मामूली सी पारिश्रमिक में काम करने के लिये मजबूर रहते है। बाल श्रमिको को भी गांवो से खोजकर काम में लगा लेते है। श्रम विभाग कई बार इन होटलो में दबिश देकर बाल श्रमिक पकड़ तो लेते हैं लेकिन जब कार्रवाई की बारी आती है तब बंगले झांकने लगते है। अभी हाल ही में श्रम विभाग ने 12 श्रमिक पकड़े थे, लेकिन कार्रवाई का पता नहीं है।
कागज के टुकड़े बने होटलों की करेंसी
सरकार भले यह दावा कर रही हो कि उनकी करेंसी ही देश में चल रही है, लेकिन सीधी में तो रसूखदारो की करेंसी अलग चलने लगी है। यकीन न हो तो कलेक्ट्रेट के पास संचालित प्रेमस्वीट, अवध होटल, सुधाकर होटल, सबेरा होटल में जाकर चाय नाश्ता करने के बाद उनका भुगतान करके देख ले। छुट्टा पैसा होने के बावजूद कागज की करेंसी थमा दी जायेगी। भले ही उपभोक्ता शहर के बाहर का रहने वाला हो जो दुबारा उस दुकान में न पहुंच सकता हो, तो भी उसे होटल व्यवसायी अपनी ही करेंसी थमा देते है। यदि उसने विरोध किया तो मारपीट तक की नौबत आ जाती है।
शहर में रसूखदारों की बोलती है तूती
अप्रैल 25, 2013
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