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वनभूमि अधिकार के लिए भटक रहे आदिवासी

अनिल गुप्ता, भोपाल.


एकता परिषद द्वारा आयोजित राज्य स्तरीय संवाद में आदिवासियों ने सुनाई आप बीती एकता परिषद द्वारा आयोजित राज्य स्तरीय संवाद में आदिवासियों ने सुनाई आप बीती
 

वन अधिकार देने के बजाय आदिवासियों को जंगलों से खदेड़ने में जुटा है वन विभाग

वनअधिकार मान्यता कानून लागू होने के 5 वर्ष बाद भी हजारों की तादाद में वनभूमि पर वर्षो से काबिज आदिवासी अपने हक के लिए एक विभाग से दूसरे विभाग के चक्कर काट रहे हैं। इसके साथ ही विन विभाग की प्रताड़ना अलग से झेलनी पड़ रही है।
इस हकीकत का खुलासा रविवार को गांधी भवन में एकता परिषद द्वारा आयोजित राज्य स्तरीय सवांद में प्रदेश के विभिन्न जिलों से आए आदिवासियों ने किया। इसके मुख्य अतिथि मप्र हाउसिंग बोर्ड के अध्यक्ष रामपाल सिंह ने कहा कि संवाद में उठाये प्रत्येक बिंदुओ को वे सरकार के समक्ष रखेंगे और विश्वास दिलाया कि उस पर कार्यवाही की जायेगी। भूमि आंदोलन से जुड़े उत्तरप्रदेश के राकेश दीक्षित ने जमीनी स्तर पर भूमि आंदोलन को मजबूत कर सरकार पर जनदबाव बनाने की रणनीति की आवश्यकता पर बल दिया। संवाद का संचालन एकता परिषद के प्रांतीय संयोजक दीपक अग्रवाल ने किया। इस मौके पर अनीष कुमार के.के, जीतेन्द्र कुमार, महेन्द्र गोहिया, अशोक कुमार, सरस्वती उइके और राकेश रतन सिंह आदि थे।

आदिवासियों ने बयां की पीड़ा
-रायसेन जिले के डोभ गांव से आये भूर सिंह ने कहा कि उनके गाँव के आस पास के गाँवं में सामुदायिक अधिकार नहीं मिल रहे। राष्ट्रीय पार्क व अभ्यारण्य के कारण आदिवासियों को निस्तार रोका जाता है और वनविभाग प्रताडित करता है।
-बैतूल जिले की श्रीमती संतो सरयाम ने कहा कि भैंसदेही, आमला तथा भीमपुर ब्लाक में राजस्व व वनसीमा के विवाद में आदिवासी पिस रहे हैं। वनअधिकार मान्यता कानून लागू नहीं होने के कारण आदिवासियों को रहवास नहीं मिल पा रही है।
-बैतूल जिले के पाट गावं के 18, मांगाझीरी गांव के 6 और गुरूवां गावं के 45 लोगो को झूठे केस में फंसा दिया गया है। इससे गांव वाले पट्टा मांगने के बजाय अदालत के चक्कर काट रहे हैं।
-रायसेन जिले के सुल्तानपुर से आये विजयभाई ने कहा कि नगर पंचायत की सीमा का गलत सहारा लेकर आदिवासियों को भूमि अधिकार से वंचित किया जा रहा है।
-मडंला जिले से आये राजेश कुमार ने बताया कि टिकरी चलनी गांव में वन सुरक्षा समिति कानून लागू होने के बाद से हर साल 86 गौड आदिवासी परिवारों की खेती जलाने के साथ ही जानवरों को खेतों में हांक दिया जाता है।

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