शमिन्दर सिंह, शाहजहांपुर.
पानी हमारे देश के विकास की रीढ़ है और धरती पर पानी के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। अकेले मनुष्य के शरीर में 65 प्रतिशत भाग पानी का होता है, लेकिन यही पानी आज तेजी से प्रदूषण का शिकार होता जा रहा है, साथ ही धरती की कोख में बचा-खुचा पानी सरकारी लापरवारी के चलते व्यर्थ गंवाया जा रहा है, जिससे बड़ी मात्रा में सरकारी धन की हानि भी हो रही है।
विश्व जल दिवस के अवसर पर रिसेप्टिव एसेंशियल साइंटिफिक एजूकेशन एड्वांसमेंट रिसर्च कमेटी फॉर ह्यूमनिटी (रिसर्च) द्वारा नगर के अनेक क्षेत्रों में सर्वे कर वाटर सप्लाई का विश्लेषण किया गया। इसमें पाया गया कि नगर के गली-कूचों में लगे वाटर सप्लाई के नल टूटे हुए है या उनमें टोटी ही नहीं है। स्थिति यहीं तक नहीं है, कुछ सड़कों के नीचे पड़ी और बजबजाती नालियों के पास से गुजरी पानी की पाइप लाइनें लम्बे अर्से से टूटी हुई हैं, जिससे पानी रिसता रहता है और गंदगी पानी में मिलती रहती है।
रिसर्च के निदेशक डा. इरफन ह्यूमन ने बताया कि सुबह के समय किसी भी गली में पानी व्यर्थ बहने का नजारा आसानी से देखा जा सकता है, लेकिन जिÞले के आला अधिकारियों या नगर पालिका कर्मचारियों की नजÞर इन पर कभी नहीं पड़ती। कारखानों से निकलने वाले दूषित पानी के साथ घरों से निकलने वाले मल-मूत्रयुक्त पानी को आज सीधे नदियों में छोड़ा जा रहा है, जो पर्यावरण की दृष्टि से बेहद घातक है। ऐसे पानी में आक्सीजन की मात्रा कम होती है, जिससे जलजीव और वनस्पतियां आदि नष्ट होने लगती हैं और रोगकारी परजीवियों की आबादी बढ़ जाती है। यही नहीं इस पानी में अमोनियम, एसीडिटी, नाइट्रेट, फस्फट, सल्फट, साबुन, डिजरजेंट, भारी धातुएं, रासायनिक खादों के अंश धरती के नीचे भूगर्भ जल में मिल जाते हैं और हमारे पीने के पानी को जहरीला कर देते हैं।
उन्होंने घरों से बहाए जाने वाले पानी को पुन: उपयोग में लाने के उपाय बताते हुए कहा कि आमतौर से जो पानी हमारे इस्तेमाल के बाद रसोई से, नहाने और कपड़े धोने के बाद अर्थात 50 से 70 प्रतिशत तक घरों से निकलकर नालियों में बह कर व्यर्थ चला जाता है, उसको पुनचक्रण से दोबारा इस्तेमाल लायक बनाया जा सकता है। इस रीसाइकिल्ड पानी का उपयोग टायलेट में डालने, कार या दोपहिया वाहन धोने, मकान बनवाने, सिंचाई और बगचों में डालने आदि में किया जा सकता है। उन्होंने सुझाव देते हुए कहा कि शासन को चाहिए कि सरकारी भवनों और स्कूलों को बनाते समय इस बात का ध्यान भी रखा जाए कि उसमें वाटर रिचार्ज सिस्टम भी लगाया जाए।
धरती पर पानी बिना जीवन की कल्पना नहीं
मार्च 21, 2013
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