तारिक खान, लखनऊ.
जयपुर के चिंतन शिविर में पार्टी के उपाध्यक्ष बनने के बाद राहुल गांधी ने पार्टी की प्रचलित खामियों को दूर करने के जो वादे किये थे, उन्हें पूरा करने के मकसद से उन्होंने अपनी सक्रियता तेज कर दी है। चुनावों में उम्मीदवारों पर फैसला करने के लिए राज्यों की ओर से एक पंक्ति का प्रस्ताव किया जाना, कांग्रेस में अब बीते दिनों की बात हो सकती है। राहुल गांधी की इस स्पष्ट घोषणा से कि चुनाव के लिए उम्मीदवार अब ऊपर से तय नहीं होंगे, यह माना जा रहा है कि राहुल गांधी ने जो कहा है अब उसी पर अमल होगा। इस क्रम में उन्होंने पिछले दिनों कांग्रेस शासित राज्य के मुख्य मंत्रियों व समस्त प्रदेश अध्यक्षों की एक बैठक बुलाई थी। दो दिन तक चली इस बैठक में राहुल गांधी ने कभी डांट कर कभी पुचकार कर या फिर मजकिया अन्दाज में अपनी बात कहकर पार्टी के लोगों को यह सन्देश दे दिया कि, वह क्या चाहते हैं। राहुल ने उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के करीब 11 महीने के बाद अपनी खामोशी तोड़ते हुए अपनी पीड़ा को व्यक्त किया।
हालांकि, उन्होंने उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव में पार्टी की करारी हार के बाद जिम्मेदारी लेने में देरी नहीं की थी। मगर हार किन कारणों के चलते हुई, उस पर उन्होंने कभी विस्तार से अथवा मुखरता से जिक्र नहीं किया था। बैठक में उत्तर प्रदेश कांग्रेस पर व्यंग्य करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि, हमारे यहां उत्तर प्रदेश में तो मुख्यमंत्री पद के 200 उम्मीदवार थे, लेकिन चुनाव में पार्टी को सिर्फ 22 सीटें ही हासिल हो सकी। मुख्यमंत्री पद के जो 200 उम्मीदवार थे, जबकि उनमें से तो कई संयुक्त राष्टसंघ के महासचिव, अमेरिका के राष्टपति पद तक के उम्मीदवार भी है। यही नहीं राहुल ने यहां तक कह दिया कि, जो लोग आगे पीछे घूमते हैं, वे काम नहीं करते और जो लोग काम करते हैं, उन्हें आगे आने नही दिया जाता है। भले ही कुछ लोग राहुल की इन बातों को मजाक मानकर टालने का प्रयास करें, लेकिन राहुल ने नेताओं को यह एहसास तो करा ही दिया कि, अब उनको कुछ करके दिखाना ही पड़ेगा।
जानकारों का मानना है कि उत्तर प्रदेश के चुनावों में मिली करारी शिकस्त के बाद उनका यह अब तक का सबसे कड़ा रुख है। वहीं दूसरी तरफ, प्रदेश कांग्रेस के नेता राहुल गांधी के इस कमेंट को गम्भीरता से लेने के बजाए हास्य व्यंग्य के तौर पर ले रहे है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डा. निर्मल खत्री ने तो यह कह दिया कि उन्हें राहुल गांधी के इस बयान के बारे में पता नहीं है, जबकि सूत्रों का कहना है कि राहुल गांधी के इस सख्त रवैये के बाद प्रदेश कांग्रेस के नेताओं का ब्लड प्रेशर घटने-बढ़ने लगा है।
जहां तक कांग्रेस में टिकट वितरण की प्रक्रिया का सवाल है तो इसको लेकर पार्टी में परिवारवाद, चापलूसवाद व पहले आओ पहले पाओ के गंभीर आरोप लगते रहे हैं। इसके चलते जहां जमीन से जुड़े कार्यकर्ताओं की अनदेखी होती थी, वहीं योग्य उम्मीदवारों का चयन सही तरीके से नहीं हो पाता था। चुनाव के एन वक्त दूसरे दलों से आए दल बदलू टिकट हासिल करने में सफल हो जाते थे, ऐसे में पार्टी से जुड़े कार्यकर्ताओं को निराशा हाथ लगती थी। फिर यह भला कैसे अपने ऊपर थोपे गए प्रत्याशी के चुनाव में दिल से मदद करेंगे। उत्तर प्रदेश के पिछले विधान सभा चुनाव में पार्टी की जो दुर्दशा हुई, उसका सबसे बड़ा कारण यह भी रहा, जिसका ऊपर जिक्र किया जा चुका है। इसके अतिरिक्त पार्टी में युवाओं को आगे बढ़ाने की बात तो खूब कही जाती है, लेकिन देखने को इसके उल्टा मिलता है। अधिकांश युवा जो पार्टी में आए हैं, वे राजनीतिक जमीन की उपज न होकर बल्कि पार्टी के किसी ताकतवर नेता के परिवार के सदस्य होते हैं या उनके सिफारिशी होते है, जिसने पार्टी के लिए भले ही कोई योगदान न किया हो, लेकिन टिकट की दावेदारी हमेशा उसकी बनी रहती है। ऐसे में राहुल गांधी पार्टी की इस दिलचस्प टिकट वितरण प्रक्रिया में बदलाव लाकर उसे पारदर्शी बनाने की कोशिश कर रहे हैं। इसमे कामयाबी कितनी होगी, यह तो वक्त बताएगा, लेकिन राहुल गांधी ने साफ कर दिया कि सिर्फ योग्य जिताऊ उम्मीदवार को ही तरजीह दी जायेगी। किसी की सिफारिश नहीं चलेगी। बल्कि प्रत्याशी की हार पर सिफारिश करने वाले नेता को जिम्मेदारी लेनी पड़ेगी। उम्मीद की जाती है कि राहुल गांधी के इस दो टूक अन्दाजÞ के बाद पार्टी में दूर -दूर तक फैलते चापूलस और स्वयं न चुनाव लड़ने वाले नेताओं की जमात सदमें में होगी ।
कांग्रेस के बारे में एक कहावत प्रचलित है कि जितनी पुरानी पार्टी, उसमें उतनी ही व्यापक गुटबाजी। विशेष रुप से राज्यों में यह बीमारी पार्टी की जड़ों तक फैली हुई है, जिसके चलते पार्टी अधिकांश राज्यों में क्षेत्रीय दलों से काफी हद तक पिछड़ कर रह गई है। पार्टी को इससे निकलने के लिए उन्होंने सभी राज्यों में प्रदेश संगठन व विधान मंडल दल के बीच एक समन्वय समिति गठित करने के आदेश दिए हैं। उन्होंने सभी प्रदेश अध्यक्षों को अपने -अपने राज्यों के जिलों में कम से कम दस दिनों तक रहने के निर्देश दिये है, कार्यकर्ताओं व जनता से जुड़े रहने व दो माह के अन्दर सभी प्रदेश अध्यक्षों के जिÞला स्तर पर संगठन अध्यक्ष व टीम को खड़ा करने के निर्देश देने के साथ-साथ सबकी जवाबदेही तय करने की कोशिश भी की है।
यह कहा जाए तो गलत नहीं होगा कि पार्टी के उपाध्यक्ष बनने के बाद संगठन पर अपनी पकड़ मजबूत करने की दिशा में राहुल गांधी आगे बढ़ रहे हैं। इसी क्रम में वह प्रदेश के नेताओं के काम पर पैनी नजर रखेंगे, वहीं प्रदेश संगठन की समीक्षा के लिए रहुल हर दो-तीन माह में दिल्ली में बैठक करेंगे। राज्यों को हर दो माह में जिला संगठन की समीक्षा करने के संदेश भी दिया है। जाहिर है, प्रदेश स्तर पर नेताओं ने राहुल के बताये हुए रास्तों पर नेक दिली से चलना शुरु कर दिया तो आगामी चुनावों में अच्छे नतीजे निकलने की पूरी संभावनाएं हैं ।
कांग्रेस को नये सिरे से मजबूती देने की कोशिश में राहुल
मार्च 06, 2013
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