रेल बजट 2011-12 में तत्कालीन रेलमंत्री ममता बेनर्जी ने कल्याण के पास स्थित ठाकुर्ली में करीब 86 एकड़ पर 1400 करोड़ रूपये की लागत से थर्मल पावर प्लांट की स्थापना करने की घोषणा की थी। तब से यह घोषणा कागजी फाइलों में दबी पड़ी है। पिछले तीन वर्ष बीत गया है लेकिन अभी तक गैस का एग्रीमेंट तक रेलवे विभाग नहीं कर पाया है। इतना ही नहीं स्थानीय सांसद आनंद परांजपे भी इस योजना का विरोध करते आ रहे है। इससे भी इस परियोजना पर ग्रहण लगता दिखाई पड़ रहा है। जबकि इस परियोजना के बारे में कई विशेषज्ञों का मानना है, कि ठाकुर्ली बिजली पावर प्लांट की शुरुआत होने से सिर्फ रेलवे को ही नहीं, बल्कि मुंबई और ठाणे के कुछ इलाकों में भी बिजली की आपूर्ति हो सकेगी।
1988 में हादसे के बाद से है बंद ऐतिहासिक प्लांट
गौरतलब है कि, करीब आठ दशक पहले (1932) ठाकुर्ली में ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे (रेलवे का तत्कालीन नाम) ने कोयले से बिजली उत्पादन करने वाले अपने पहले पावर प्लांट की स्थापना की थी। यहां पर जो बिजली बनती उसका उपयोग रेलगाड़ी चलाने के लिए होता था। 1988 में एक हादसा हुआ जिसमें प्लांट में काम करने वाले आठ वर्कर मारे गए। उस हादसे के बाद इस प्लांट को भी बंद कर दिया गया, और तब से यह बंद ही पड़ा है। कुछ साल पहले सेंट्रल रेलवे ने इस पावर प्लांट की पुनर्स्थापना के लिए रूपरेखा तैयार कर ली थी, नजदीकी उल्हास नदी से पानी सप्लाई कर बिजली उत्पादन करने का प्लान बनाया गया। बाद में गैस से बिजली पैदा करने का प्लान बना, लेकिन पेट्रोलियम मिनिस्ट्री से गैस नहीं मिलने के बाद अब इस प्लांट के उपयोग के सारे कयास अधर में नजर आ रहे हैं।
रोजाना 700 मेगावाट बिजली उत्पादन होगा
हालाँकि मुंबई सबर्बन को फिलहाल हर रोज 500 मेगावाट बिजली की जरूरत पड़ती है। इसमें से 300 सेंट्रल और लगभग 200 मेगावाट बिजली की सप्लाई वेस्टर्न रेलवे को होती है। ठाकुर्ली प्रकल्प तैयार होने पर वहां से रोजाना 700 मेगावाट बिजली का उत्पादन होगा। फिलहाल रेलवे को महंगी दरों पर बिजली खरीदनी पड़ती है। एक रेलवे अधिकारी के अनुसार रेलवे को बिजली के लिए प्रति यूनिट 6.50 रुपये देने पड़ते हैं, जबकि ठाकुर्ली पावर प्लांट से रेलवे को 3.80 पैसे प्रति यूनिट की दर से बिजली प्राप्त हो सकेगी। इस लिहाज से ठाकुर्ली थर्मल पावर प्लांट रेलवे के बजट में कटौती के लिए बेहद जरूरी है। वैसे इस महत्वाकांक्षी योजना की घोषणा किये तीन वर्ष बीत गए है, लेकिन अभी तक इस परियोजना को शुरू करने के लिए 3.60 एमएमएससीएडी गैस की जरूरत है और इसकी ही व्यवस्था अभी तक नहीं हो सकी है।
सांसद ने पर्यावरण बिगाड़ की शंका पर विरोध शुरु किया
अब इस परियोजना का विरोध स्थानीय सांसद आनंद परांजपे के आलावा स्थानीय नागरिक भी कर रहे है। सांसद आनंद परांजपे का कहना है कि पिछले तीन साल में गैस का एग्रीमेंट तक रेलवे प्रशासन नहीं कर पाया है, तो प्लांट कैसे खड़ा कर सकती है। साथ ही उन्होंने कहा कि जहां पर इस परियोजना को शुरू करना है, वहां पर पहले से प्रदूषण के साए में नागरिक जी रहे है। डोम्बिवली और ठाकुर्ली पहले से देश में प्रदूषण के मामले में 14 वें स्थान पर है। इतना ही नहीं डोम्बिवली का अधिकांश क्षेत्र केमिकल जोन में आता है। ऐसे में यदि पावर प्लांट परियोजना को शुरू किया जाता है तो प्रदूषण की मात्रा और बढ़ जाएगी। इससे यहां के नागरिकों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। इसलिए उनका एक जनप्रतिनिधि होने के नाते इस परियोजना का विरोध है और वे इसकी लड़ाई संसद में भी लड़ेंगे ।