जिले में आज भी पुरानी रस्में और प्रचलित परम्पराओं को लेकर लोगों में खासी उत्सुकता रहती है। होली के पास आते ही सबके मन को बसंत तो भाने ही लगता है साथ ही आदिवासियों का पर्व भगौरिया भी याद आता है। बताया जाता है की पर्व भगौरिया जिले के लाडकुई और आसपास के अलावा बिलकिसगंज और वीरपुर में पूरे उत्साह के साथ काफी लम्बे समय से मनाया जाता रहा है। इस बार आदिवासियों का पर्व भगौरिया पूरे उत्साह से मनाया जाएगा।
होली के पहले सीहोर जिले के ग्रामों में भगौरिया पर्व की धूम रहती है। पिछले साल के पर्व के दौरान मस्ती में रहे लोगों के चित्र एकत्र किए गए हैं, लोग बता रहे हैं कि इस साल भी भगौरिया की धूम रहेगी।
अनेक टोलियां भगौरिया के लिए तैयार है, लोगों ने बड़े-बड़े ढोल तैयार कर लिए हैं। रितुओं के रंग भी बदलते देर नहीं लगती है, देखिए न अभी कुछ समय पहले कड़ाके की सर्दी ने लोगों का हाल-बेहाल कर रखा था, लेकिन ठंड ढलते फिर आ गई रुत बसंत की। ऋ तुओं की रानी समझा जाता है इसे। अब बसंत का मौसम लागों को लुभा रहा है। बसंत की बयार लोगों को उत्साहित कर रही है। पेड़ों से झड़ती पत्तियां वसंत ऋ तु की खूबसूरती में रंगघोल रही है, वही पलाश में फूल भी आ गए है जो लोगों को अपनी ओर लुभा रहे है। होली के पहले सीहोर जिले के ग्रामों में भगौरिया पर्व की धूम रहती है। पिछले साल के पर्व के दौरान मस्ती में रहे लोगों के चित्र एकत्र किए गए हैं, लोग बता रहे हैं कि इस साल भी भगौरिया की धूम रहेगी।
पीत वस्त्रों में मनेगा भगौरिया
वैसे तो हर ऋ तु का अपना महत्व होता है, लेकिन ऋ तुओं की रानी मानी जाने वाली बसंत ऋ तु का अपना अलग महत्व है। हल्की सी ठंडक और गर्मी का एहसास कराता यह मौसम लोगों को खूब भाता है। नया संवत शुरू होने से नए साल के पहले त्यौहार इसमें बसे रहने के कारण इसे बसंत कहा जाता है और खुशी का आलम रहता है। मंगल कार्य, विवाह आदि में भी इस दौरान होते हैं। सुहाना मौसम, फूलों की बहुतायत, तैयार खेती, मतवाला मौसम, आम की बौर, खिलते कमल, सुहानी शाम आदि सब इसे ऋ तुराज बनाते हैं। भगौरिया मनाने वाले भी पीत वस्त्रों को ही पसंद करते हैं, जोकि वसंत का ही रंग माना जाता है। आदिवासी बालाएं पीत वस्त्रों की चुनरिया या ओढ़नी ही पसंद करती हैं।