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गांधी, नेहरु और राजीव के सपने को बेच खाया कांग्रेसियो ने

*प्रेस भवन की परमीशन की आड़ में तन गया प्रेस कांप्लेक्स में शॉपिंग मॉल
*नवजीवन प्रेस की जमीन पर अवैध निर्माण पर नगर निगम और बीडीए की मेहरबानी
*लीज शर्तों के उल्लघंन के बाद भी सिर्फ नोटिस देकर सालों से लंबित है कार्रवाई


भोपाल.
महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरु और राजीव गांधी के नाम पर सियासत करने वाले कांग्रेस नेताओं ने उनकी विरासत को सहेज कर रखने के बजाय ठिकाने लगा दिया। जिस कांग्रेस के नेता देश चलाने का दम भरते हैं, जिनका दावा है कि उनकी ईमानदार नीतियां और उनके सुकार्य देश की जनता को बेहतर और असीमित रोजगार के अवसर दे पाएंगे, वही कांग्रेस नेता गांधी और नेहरु से विरासत में मिले अखबार को नहीं चला पाए। अखबार से जुडे कर्मचारियों को भी रोजी रोटी से महरुम कर दिया। 
राजीव गांधी ने इस अखबार के प्रति अपने लगाव को कायम रखा, मगर जिन कांग्रेस नेताओं की निगाहें महंगी होती जा रही अखबार के नाम पर आंवटित हुई जमीनों पर टिकी थी, वह अखबार को तालाबंद करवाने की फिराक में थे। राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस नेताओं ने यही किया और करोड़ों की जमीनों के साथ ही प्रिटिंग मशीनों आदि को ठिकाने लगा दिया। 
भोपाल में नवजीवन अखबार निकालने के लिए बनाए गए नेहरु भवन का नामो निशान जमींदोज करके बहुमंजिला शॉपिंग कांप्लेक्स बनाकर बेचा जा चुका है। भोपाल तो एक उदाहरण है, गांधी और नेहरु के इस सपने को तो कांग्रेसियों ने देशभर में बेच ड़ाला।
आजादी के लड़ाई के दौरान 1938 में महात्मा गांधी ने नवजीवन अखबार शुरु किया था, तब इसके संचालनकर्ताओं में प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु भी शामिल थे। आजादी के बाद इस अखबार का प्रकाशन जारी रखने के लिए एक कंपनी मेसर्स एसोसिएट जर्नल लिमिटेड (एजेएल) बनाई गई। इस अखबार का प्रकाशन पूरे देश से करने की योजना के तहत कमोबेश हर प्रदेश की राजधानी में भूति आंवटित करवाने के साथ ही प्रिटिंग मशीनें लगवाई गर्इं। राजीव गांधी के जीवन काल में अखबार के प्रकाशन में चंद लालची कांग्रेसियों के कारण परेशानी आना शुरु हो गई थी, लेकिन राजीव चाहते थे कि अखबार प्रकाशित होता रहे। बावजूद इसके राजीव गांधी की हत्या होते ही एजेएल के कर्ताधर्ता बने कांग्रेसी नेताओं ने ही नवजीवन के दफ्तरों पर ताले ड़ालने शुरु कर दिए और अखबार के नाम पर अर्जित की गई जमीनों को अपनी मालिकाना संपत्ति मानते हुए बेच ड़ाला।
लीज शर्तों का उल्लंघन करके प्रेस कांप्लेक्स में मेसर्स एसोसिएट जर्नल लिमिटेड (एजेएल) को आवंटित जमीन पर शॉपिंग मॉल तन गया, जिसमें विशाल मेगा मार्ट और लोटस सहित दर्जनों आफिस और कॉमर्शियल चेंबर हैं। इसके बाद भी नगर निगम और भोपाल विकास प्राधिकरण ने सिर्फ नोटिस ही जारी किए, लेकिन साल-दर-साल बीतने के बाद भी अवैध निर्माण के खिलाफ कार्रवाई नहीं हो पा ही है। दूसरी ओर, नगर निगम के सिटी इंजीनियर अनिल नन्दा के सगे बडे भाई अशोक नन्दा को इसी अवैध निर्मित बिल्डिंग के एक बडे हिस्से बिना एक छदाम चुकाए बतौर दान में दिया गया है।
बीडीए मानता है कि, आवंटित लीज भूमि का स्वामित्व एजेएल के पास है, जिसको बेचने या उपयोग परिवर्तन की अनुमति नहीं दी गई है। बीडीए ने इस संबंध में संजय चतुर्वेदी, सचिव, नवजीवन कर्मचारी संघ को लिखे पत्र क्रमांक 4113/राजस्व/भोविप्रा/09 दिनांक 22 अक्टूकर,2009 में प्लॉट क्रमांक-1, प्रेस काम्पलेक्स एमपी नगर के स्वामित्व संबंधी स्पष्टीकरण दिया है। बीडीए के अनुसार, आवंटन सिर्फ प्रेस के लिए किया गया है। इसके बाद भी बीडीए ने सिर्फ भूमि का आवंटन ही निरस्त किया, लीज कैंसिल नहीं करवाई। होना यह था कि, भूमि आवंटन निरस्त करने के तत्काल बाद ही बीडीए को लीज निरस्त करवाने के लिए सिविल कोर्ट जाना था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। इस जमीन की लीज स्वीकृति के साथ ही रजिस्ट्री करवाई गई है, ऐसे में रजिस्ट्री निरस्ती के लिए कोर्ट जाना ही पडेगा। 
इस मामले में संदिग्ध लापरवाही पर अपनी साख बचाने के लिए बीडीए ने नवंबर,12 में एक और नोटिस जारी करके 15 दिन में भवन खाली करने का अल्टीमेटम दिया था, जिसमें कहा गया था कि, इस मियाद के बाद पुन:प्रवेश की कार्रवाई करेगा। हालांकि, यह नोटिस भी महज खानापूर्ति साबित होकर रह गया और बीडीए ने कोई कार्रवाई नहीं की। 
यही टालू रवैया नगर निगम का भी रहा, जिसने मार्च-अप्रैल,2011 में अवैध निर्माण के खिलाफ कार्रवाई की तैयारी की थी। इस बारे में निगम ने बीडीए को पत्र लिखते हुए कहा था कि, निगम कार्रवाई शुरु करने जा रहा है, ऐसे में बीडीए भी कार्रवाई करे। इसके बाद से करीब डेढ़ साल बीत चुका है, लेकिन निगम ने कार्रवाई नहीं की है।

राजीव गांधी की हत्या के बाद बंदरबांट
प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु द्वारा स्थापित एसोसिएट जर्नल्स लिमिटेड के लिए प्रेस कांप्लेक्स में 1981 में 1.14 एकड़ जमीन की लीज जारी की गई थी। इस पर प्रदेश में सबसे पहले आफसेट मशीन स्थापित करके नवजीवन समाचार पत्र का प्रकाशन शुरु किया गया, लेकिन 1992 में प्रकाशन बंद हो गया। इसके बाद करीब 6 साल तक जमीन खाली पड़ी रही, इसके बाद राजीव गांधी की हत्या के बाद मोतीलाल वोरा एजेएल के अध्यक्ष और विश्वबंधु गुप्ता डायरेक्टर बने। गुप्ता ने ही दिल्ली की गंगा एंटरप्राइजेज के बिल्डर एनके मित्तल को पॉवर आफ अटार्नी दे दी। सूत्रों की माने तो एनके मित्तल को मोतीलाल वोरा का वरदहस्त प्राप्त है और इसी रिश्ते के आधार पर पॉवर आफ अटॉर्नी सौंपी गई। इसके बादद वर्ष 2000 से बिल्डिंगों का निर्माण शुरु हो गया। फिलहाल, शॉपिंग कांप्लेक्स को सिटी सेंटर का नाम दिया गया है, जिसमें आगे की ओर विशाल मेगा मार्ट और पीछे के हिस्से में लोटस है। यहां पर बने 50 से ज्यादा दुकानों और आॅफिसों की रजिस्ट्री विश्वबंधु गुप्ता के हस्ताक्षर से करवाई गई है। वर्तमान में जमीन की कीमत 7 हजार रुपए वर्ग फुट है। गौरतलब है कि, पहले इस जगह की पहचान नेहरु भवन हुआ करती थी।

यशपाल कपूर का नाम उछाला
करोड़ों के इस जमीन घोटाले को दबाने के लिए अब एजेएल के पूर्व अध्यक्ष यशपाल कपूर का नाम उछाला जाने लगा है। हालांकि, जमीन की बंदरबांट से बहुत पहले ही कपूर की मौत हो चुकी थी। वैसे कपूर को एजेएल को नई ऊंचाईयां देने के लिए जाना जाता है। कपूर के एजेएल के अध्यक्ष रहते ही भोपाल के साथ ही इंदौर, पटना, मुंबई आदि शहरों में जमीन आवंटन करवाया जाकर अखबार का प्रकाशन शुरु हुआ था। कपूर के बाद तत्कालीन वित्त मंत्री रामेश्वर ठाकुर अध्यक्ष बने, जो बाद में मध्यप्रदेश के राज्यपाल भी रहे। ठाकुर के अध्यक्षीय कार्यकाल में भी एजेएल की स्थिति मजबूत बनी रही। वास्तविकता यही है कि, एमपी नगर स्थित एजेएल की संपत्ति की बिक्री तब शुरु हुई, जब एजेएल की कमान कांग्रेस पार्टी के कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा को दी गई।

यह है अशोक नंदा का दानपत्र
इस जमीन को खुर्दबुर्द करने में एजेएल के कर्ताधर्ताओं के साथ ही नगर निगम और प्रशासन के जिम्मेदार अफसर भी शामिल रहे। इसकी बानगी इसी से मिल जाती है कि, नगर निगम भोपाल के सिटी इंजीनियर अनिल नंदा के बडेÞ भाई अशोक नंदा को एजेएल की जमीन पर अवैध निर्माण के नतीजे में बने कांप्लेक्स में एक बड़ा हिस्सा दान के जरिए दिया गया। हालांकि, दान के लिए निर्धारित नियमों और परिभाषाओं में यह नहीं आता, फिर भी न तो किसी जिम्मेदार अफसर या किसी राजनीतिक दल ने ही इस अनियमितता के बारे में आवाज उठाने की जहमत ही उठाई। अशोक नंदा के नाम पर किए गए दानपत्र के अनुसार, 18 मई,2007 को मेसर्स एसोसिएट जर्नल लिमि, कार्यालयीन पता 5 ए बहादुरशाह जफर मार्ग, नई दिल्ली, के मुख्तारआम मेसर्स गंगा एंटरप्राइजेज, एफ-345, कोटला मुबारकपुर, नई दिल्ली द्वारा पार्टनर नरेंद्र मित्तल वल्द विलायती राम मित्तल, निवासी जी-62, ईस्ट आॅफ कैलाश, नई दिल्ली एवं मेसर्स सौम्या होम्स प्रालि, 69 ए, जोन-2, एमपी नगर भोपाल द्वारा मुख्तारआम संजयकुमार सिन्हा वल्द आरपी सिन्हा द्वारा अशोक नन्दा वल्द एसआर नंदा निवासी ए-5 कस्तूरबा नगर, भोपाल के नाम एलजी-4 से एलजी-11 तक आॅफिस चेंबरों का दान किया गया। इन चेंबरों का कुल क्षेत्रफल 4896.48 वर्ग फुट है। दानपत्र के अनुसार, इन चेंबरों पर स्वामित्व अधिनियम,1976 के प्रावधान लागू होते है। इस संबंध में आवश्यक घोषणा पत्र नियमानुसार उप पंजीयक कार्यालय भोपाल में पुस्तक क्रमांक अ-1 ग्रंथ क्रमांक-26101, दस्तावेज क्रमांक-3759 (घ) दिनांक 29 मार्च,2007 को पंजीयत किया गया है। 

अधूरा रह गया राजीव गांधी का वादा

एजेएल को फिर से खड़ा करके नवजीवन अखबार का प्रकाशन शुरु करने का राजीव गांधी का सपना अधूरा ही रह गया। नवजीवन प्रेस कर्मचारी संघ के अध्यक्ष मोहम्मद सईद बताते हैं कि, राजीव की हत्या के चंद रोज पूर्व ही दिल्ली में संघ के प्रतिनिधि मंडल से गांधी ने मुलाकात की थी। तब राजीव ने भरोसा दिलाया था कि, नवजीवन समाचार पत्र का प्रकाशन फिर से शुरु होगा और प्रेस के एक भी कर्मचारी को बेकारी के कारण भूखों नहीं मरने दिया जाएगा। हालांकि, राजीव गांधी की इसके कुछ दिन बाद ही हत्या कर दी गई और प्रेस की बंद पड़ी मशीनें फिर दोबारा शुरु नहीं हो सकी।

दिल्ली तक पहुंची लड़ाई

इस अन्याय के खिलाफ दो दशक से लड़ाई लड़ रहे नवजीवन प्रेस कर्मचारी संघ के सचिव संजय चतुर्वेदी कहते हैं कि, बिल्डर एनके मित्तल को नियम विरुद्ध जमीन देकर अवैध निर्माण किया गया। इसमें कांग्रेस के कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा, विश्वबंधु गुप्ता, पूर्व मंत्री स्व. तनवंत सिंह कीर और उनका बेटा गुरुशरण सिंह, बिल्डर एनके मित्तल, संजय सिन्हा, विमल जैन, नगरनिगम के सिटी इंजीनियर अनिल नन्दा, उनके बडे भाई अशोक नन्दा के साथ ही बीडीए के अधिकारी शामिल हैं। इस बारे में सोनिया गांधी और राहुल गांधी को पूरे दस्तावेज सौंपे जा चुके हैं। अब सारे कर्मचारी फिर दिल्ली जा रहे हैं और सोनिया गांधी से मिलेंगे।

दर्ज है आफसेट मशीन चोरी होने की एफआईआर
नवजीवन अखबार छापने के लिए प्रदेश की पहली आॅफसेट मशीन सहित करोड़ों का सामान बिल्डिंग निर्माण के दौरान गुप चुप ठिकाने लगा दिया गया, जिसका अब कोई रिकॉर्ड तक नहीं बचा है। इस मामले की थाना एमपी नगर, भोपाल में 19 अक्टूबर,2007 को शिकायत दर्ज करवाई गई थी। इसके बाद विवेचना में चोरी होना साबित होने पर बाकायदा चोरी का नामजद अपराध बिल्डर एनके मित्तल और हर महेंद्र सिंह बग्गा के खिलाफ 8 जनवरी,2008 को दर्ज किया गया था। इसके बाद पुलिस दो साल तक मामले को छानबीन के नाम पर लटकाए रही, जिसके परिणामस्वरुप नवजीवन प्रेस कर्मचारी संघ द्वारा 8 जनवरी,2010 को एफआईआर दर्ज होने के दो साल पूरे होने पर थाना परिसर में ही एफआईआर की दूसरी वर्षगांठ मनाने का अनूठा प्रदर्शन किया गया। इस मौके पर प्रदर्शनकारियों ने दो किलो का केक काटा। इससे मीडिया में फजीहत होने से बौखलाई पुलिस ने दो साल से लंबित मामले में खात्मा डालने में दो महीने का भी वक्त नहीं लिया। पुलिस की खात्मा रिपोर्ट के खिलाफ कोर्ट की शरण ली गई, जहां बयान दर्ज होने के बाद बहस हो चुकी है और फाइनल आॅर्डर आना है। इसके लिए 18 जनवरी,13 की पेशी तय है। 

अनिल नन्दा, सिटी इंजीनियर, नगर निगम से सीधी बात
*विशाल मेगामार्ट के निर्माण के समय आप सिटी इंजीनियर थे?
-हां, था तो सही, लेकिन बिल्डिंग बनने से मेरा कोई लेना देना नहीं है।
*बिल्डिंग परमीशन की फाइल में गड़बड़ी की गई?
-की गई होगी, लेकिन यह तो सिटी प्लानर के आफिस का मामला है। हमने परमीशन जारी नहीं की।
*बिना नगर निगम की परमीशन के बिल्डिंग का निर्माण कैसे हो गया?
-इस बारे में टीएंडसीपी वालों से पूछिए, वही बताएंगे।
*अशोक नन्दा आपके भाई हैं?
-हां, मेरे सगे बडे भाई हैं।
*आपके भाई को इसी बिल्डिंग के एक हिस्से को दानपत्र के जरिए दिया गया?
-हां, दिया तो गया है, लेकिन मेरा उससे कोई लेना देना नहीं है।
*दानपत्र सिर्फ आपके भाई को ही दिया गया, किसी और को क्यों नहीं?
-इसका मेरे सिटी इंजीनियर रहते बिना परमीशन बिल्डिंग निर्माण से संबंध नहीं हैं।
*बिना बिल्डिंग परमीशन अवैध निर्माण पर कार्रवाई क्यों नहीं की गई?
-इस बारे में नगर निगम कमिश्नर, कलेक्टर और बीडीए के सीईओ से बात कीजिए।




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