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मियां मल्ला शाह की दरगाह, जहां सब पर बरसती है रहमत

जगदीश शुक्ला, जौरा (मुरैना).
14 से 16 जनवरी तक चलने वाले उर्स शरीफ के मुबारक मौके पर विशेष
विज्ञान के आधुनिक दौर में भले ही आस्था एवं विश्वास की बातों पर कई तरह के तर्क दिये जा सकते हैं। लोगों की फितरत भी आज कुछ ऐसी है कि जब तक इस तरह की बातों का प्रमाणिक परीक्षण ना कर लें, वह सहज ही किसी बात पर यकीन करने को तैयार नहीं होता है। लेकिन कुछ स्थान और उससे जुड़े चमत्कारिक किस्से ऐसे भी होते हैं, कि आदमी को बरबस ही यकीन ही नहीं, उसके दर पर सजदा करने को मजबूर भी होना पड़ता है।
मियां मल्ला शाह की दरगाह एवं परिसर में सूखी हुई बावड़ी
मियां मल्ला शाह की दरगाह एवं सूखी हुई बावड़ी
जौरा शहर के आगोश में सिमटते अलापुर गांव के प्रसिद्ध धार्मिक स्थान मियां मल्ला शाह की दरगाह की शान भी कुछ ऐसी ही है। आस्था एवं विश्वास का केन्द्र बना यह धार्मिक स्थल आज भी हिन्दू एवं मुसलमान दोनों मजहबों के लोगों को समान रूप से अपने दर पर सिर झुकाने को मजबूर कर देता है। 
इससे जुड़े अनेक चमत्कारी किस्से हर किसी को यहां अपना सिर झुकाने को मजबूर कर देते हैं। लोगों का मानना है कि अंचल की साम्प्रदायिक सद्भाव की गंगा जमुनी संगम जैसी तहजीब भी कुछ ऐसे ही गिने-चुने धार्मिक स्थानों की देन है।
अलापुर गांव एवं जौरा की सरहद पर बाबा कब से सजग पहरेदार बनकर अपने दर पर आने वालों की दुआ कुबूल कर उनकी मन्नतें पूरी कर रहे हैं, प्रमाणिक रूप से तो शायद यह बात कोई नहीं जानता, लेकिन गांव एवं कस्बे के सबसे बुजुर्गवार लोग भी बस यही कह पाते हैं, कि उनके दादा और परदादा भी इस स्थान के कई चमत्कारी किस्से बयां करते थे। गांव ही नहीं अंचल भर में ऐसे सैकड़ों नहीं हजारों लोग मिल जायेंगे, जो इस स्थान की चमत्कारिक बातों से इत्तिफाक रखते हैं। नीम के पेड़ के नीचे बनी एक मजार में सैकड़ों वर्षों से सुकून के साथ लेटे इस फकीर ने शायद किसी को भी निराश नहीं किया। जो भी श्रद्धा और विश्वास के साथ यहां दुआ करने आया, उसकी मन्नत पूरी हुई ऐसे भी कई उदाहरण मिल जायेंगे। मुस्लिम बाहुल्य होने के बावजूद यहां आज तक कोई कौमी नाइत्तिफाकी का कोई मौका सामने नहीं आया है। लोगों का मानना है कि बाबा खुद अंचल के अमन-चैन के रखवाले हैं। लोगों का विश्वास कायम है कि बाबा आज भी अपना वजूद कायम रखते हुए अंचल में अमन चैन और साम्प्रदायिक सद्भाव का संदेश देते हैं। मजार के प्रति लोगों की गहरी श्रद्धा की एक वजह यहां हर किसी की दुआ कुबूल होना भी है। गांव और जौरा कस्बे में ही नहीं, अढ़ाई सौ वर्ष प्राचीन इस पावन दरगाह के प्रति दूर-दराज के लोगों की आस्था भी जुड़ी है। यही वजह है कि, यहां हर साल होने वाले सालाना उर्स शरीफ के बारे में खुद आयोजन समिति को ही यह जानकारी नहीं है कि, वह कब से इस मुबारक काम को करते आ रहे हैं।
चमत्कारी बावड़ी में है दो तरह का पानी
मियां मल्ला वली शाह की दरगाह शरीफ लगभग अढ़ाई सौ साल पुरानी होने का अनुमान है। दरगाह के पास ही एक प्राचीन बावड़ी है, जो दिनोंदिन नीचे गिरते जलस्तर के कारण अब पूरी तरह सूख गई है। लेकिन बताते हैं कि, दरगाह के भीतर से ही बावड़ी तक एक गुप्त रास्ता है, जिसे कुछ वर्ष पूर्व ही दरगाह कमेटी ने बंद कराया है। इस बावड़ी के पानी को लेकर कई किस्से प्रचलित हैं। कुछ पुराने बुजुर्गवार आज भी इस बात के हामीदार हैं कि, इस बावड़ी के एक घाट पर एकदम मीठा पानी निकलता था, तो इसी बावड़ी का दूसरा घाट खारा पानी देता था। एक ही बावड़ी में दो तरह का पानी होने के पीछे अंचल में जो कहानी प्रचलित है, उसके अनुसार पुराने समय में कोई बंजारा अपने बैलों पर खांड़ लादकर व्यापार के लिये जा रहा था। उसी समय राह गुजरते बंजारे से बाबा ने पूछा कि बैलों पर क्या लदा है, बंजारे ने यह सोचकर कि बाबा कहीं खांड़ न मांगने लगें, जल्दबाजी में कह दिया कि बाबा बैलों पर नमक लदा है। यह सुनकर बाबा ने भी कह दिया कि सचमुच नमक ही होगा। बंजारे ने जब अपने मुकाम पर देखा तो बैलों पर नमक ही लदा था। व्यापारी उन्हीं पांव लौटकर बाबा के पास आकर उनके पांव पड़ गया। व्यापारी ने बाबा से शक्कर गुड़ अथवा अन्य कोई सेवा करने की इच्छा जाहिर की, तो बाबा ने कुछ भी लेने से इंकार कर दिया। व्यापारी की काफी मिन्नतों के बाद बाबा ने कहा कि एक बोरी खांड़ बावड़ी में डाल दे। व्यापारी ने भी ऐसा ही किया। तभी से दरगाह परिसर में बनी बावड़ी के एक घाट पर मीठा पानी निकलता है, तो दूसरा घाट खारे पानी का है। कुएं के पानी के संबंध में भी इसी प्रकार के कई चमत्कारी किस्से प्रचलित हैं।

उर्स शरीफ 14 से 16 जनवरी तक
बाबा मियां मल्ला शाह की जियारत में उर्स कमेटी हर साल उर्स का आयोजन करती है। इस बार भी 14 से 16 जनवरी,2013 तक उर्स रहेगा। इसमें होने वाली कव्वाली मुकाबले को सुनने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। इस बार कव्वाली मुकाबले में इलाहाबाद के राकेश दिलवर एवं दिल्ली की बेबी वारसी के बीच जोरदार मुकाबला होगा। उर्स प्रोग्राम के मुताबिक, 14 जनवरी को मीलाद-उन-नबी के बाद 15 जनवरी को चादर पोशी की रस्म अदा की जाएगी। इसी दिन रात को जोरदार कव्वाली मुकाबला होगा। आयोजन कमेटी के अध्यक्ष रस्सो खां पठान, सचिव अफसर खां, उपाध्यक्ष तहीम खां, कोषाध्यक्ष जाकिर खां, सह सचिव उम्मेद खां, सह कोषाध्यक्ष साबिर खां एवं सदस्य रहीस खां, जाहिद खां, इरशाद खां लोधी, गुट्टी खां मंजूर खां आदि ने सभी साहिबानों से कव्वाली मुकाबले में अधिक से अधिक तादाद में पहुंचने की गुजारिश की है।

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