अभिषेक पाण्डेय, मुंबई.
(लाइव इंडिया संवाददाता)
गुजरात चुनाव के नतीजों को लेकर राजनीतिक प्रेक्षकों से लेकर सट्टेबाजों और कयासबाजों के अनुमानों के घोडे सरपट दौड़ लगा रहे हैं। चुनाव मैदान में तीन बड़े नेता, एक दूसरे के खिलाफ चुनावी मैदान में है, लेकिन कभी तीनो बड़े नेता एक दूसरे दोस्त होते थे और आरएसएस के ही बैनर तले राजनीति की शुरुआत की थी। यह तीन हैं, केशुभाई पटेल, नरेन्द्र मोदी और शंकर सिंह वाघेला। इन तीनों का सियासी स्कूल आरएसएस ही रहा है और तीनों की शुरुआती शैली भी एक सी ही रही है। तीन ऐसे नाम, जिन्होंने कभी आरएसएस के साये तले राजनीति की शुरुआत तो की, लेकिन बदलते वक्त के साथ अलग हो गए।
कमोबेश यह सबको पता है कि, 90 के अंतिम दशक में केशुभाई और शंकर सिंह बाघेला के बीच सत्ता का टकराव हुआ और उस समय तक नरेन्द्र मोदी संगठन के लिए काम करते थे। शंकर सिंह बाघेला को लगा की केशु भाई के पीछे मोदी का हाथ है, जिससे नाराज होकर बघेला ने पार्टी छोड़ दी।
वरिष्ठ पत्रकार नरेंद्र शर्मा कहते हैं कि, मोदी की सियासी पकड़ इसके बाद और मजबूत होती चली गई, क्योंकि बाघेला के गुजरात भाजपा में रहते मोदी ज्यादा सहज और आक्रामक नहीं हो पा रहे थे।
वाघेला ने पार्टी छोड़ी और केशुभाई पटेल मुख्यमंत्री बने तो मोदी दिल्ली चले गए और वहीं रहते हुए अपनी जमीन तैयार करनी शुरू कर दी। उसी समय गुजरात के दो उप चुनाव में बीजेपी को मिली हार ने नरेन्द्र मोदी को गुजरात में मुख्यमंत्री बनाने का रास्ता साफ कर दिया था। नतीजा यह निकला कि, मोदी के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए उन्हें गुजरात की कमान दे दी गई।
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक पत्रकार पद्यकांत त्रिवेदी के अनुसार मोदी का कद इसके बाद बढ़ता चला गया और केशुभाई का कद पार्टी के साथ ही गुजरात की सियासत में सिमटता चला गया।
केशुभाई को अपने सिमटने का अहसास देर से हुआ, फिर भी पटेल ने अपने वजूद की सलामती के लिए दिल्ली तक चक्कर काटे, लेकिन बात नहीं बनी। कालांतर में हालात इतने बिगडे की, केशुभाई ने भाजपा का दामन छोड़ दिया। इसके बाद मोदी निष्कटंक हो गए। अब मोदी को चुनौती दे सकने वाला एक भी कद्दावर नेता गुजरात में नहीं बचा था। पार्टी और सरकार पर सिर्फ मोदी की कमान स्थापित हो गई।
फिलहाल, मोदी अपनी एक और पारी के लिए भरोसे के साथ कहते हैं कि, कांग्रेस बीते 50 सालों में सबसे बड़ी हार देखेगी और विरोधियों का पता नहीं चलेगा। दूसरी ओर, शुरुआत से ही हारी हुई लडाई लड रही कांग्रेस के वाघेला भी जीत का दावा करने से पीछे नहीं हट रहे हैं। रही बात, केशुभाई पटेल की तो अपने जातिगत वोटबैंक के आधार पर सत्ता परिवर्तन का सपना साकार होने का गणित समझा रहे हैं।
अब देखना है की गुजरात के इस महाभारत में आरएसएस का कौन सा कार सेवक अपनी मंजिल तक पहुंचता है।