Type Here to Get Search Results !

बढ़ता चल मुसाफिर, मंजिलों को इंतजार है तेरा...

जगदीश शुक्ला, जौरा (मुरैना).

सियासत एक ऐसी राह है, जहां हमसफर मिलते हैं, पीछे छूटते हैं और कभी-कभी भुला दिये जाते हैं किसी निहित उद्देश्य के लिये, लेकिन प्रदेश के सियासी सफर में वर्षों पूर्व के दो मुसाफिर एक बार फिर हमसफर बने हैं। इस जोड़ी का फकत एक ही संकल्प है, प्रदेश की खुशहाली और विकास। उसूलों के साथ अपनी मंजिल की ओर बढ़ते रहना इस सियासी जोड़ी का धर्म है। इसी आधार पर शिव एवं नरों के इन्द्र के नेतृत्व मे प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी का भविष्य सुनिश्चित माना जा रहा है। एक नरेन्द्र गुजरात में अपनी कामयाबी का परचम फहरा चुके हैं। दूसरे नरेन्द्र की अगुआई में प्रदेश विकास का नया सफर शुरु करने और शिवराज के तीसरे लोक कल्याणी अनुष्ठान के लिये तैयार है। सियासी पण्डितों का कयास है कि आगामी दिनों में इस जोड़ी की संकल्प शक्ति प्रदेश को गुजरात की जमात में शामिल करेगी। नरेन्द्र के आगम की आहट ने ही दूसरे दलों के सियासतदानों को किंकर्त्तव्यविमूढ़ की स्थिति में ला दिया है। विरोधी दलों की बौखलाहट एवं स्तब्धता भी कुछ ऐसे ही संकेत दे रही है। 

अंचल के इस बेटे पर सब को नाज है। एक साधारण परिवार में जन्में इस राजनीतिज्ञ ने साधारण कार्यकर्ता से अपना सियासी सफर शुरु कर, जिस सलीके से उसकी बुलंदियों को छुआ है, उससे सभी जहां हैरान हैं। अपनी शैली और सरल जीवन से वह पार्टी के अन्य नेताओं के लिये एक जीवंत प्रेरणा भी बन गये हैं। साधारण कार्यकर्ता से लेकर राश्ट्रीय राजनीति तक के सफर को जिन सधे कदमों से नापा है, वह भी कहीं भी बगैर लड़खड़ाये बगैर बहके, यह नरेन्द्र की काबिलियत का सबसे बड़ा प्रमाण है। 
नरेन्द्र की एक अन्य विशेषता जो सभी को बरबस ही उनका मुरीद बनाती है, वह है उनकी विनम्रता और सादगी। साधारण से कार्यकर्ता से लेकर बड़े राजनेता तक से जिस सादगी और विनम्रता से मिलते हैं तो मिलने वाला भूल जाता है कि, वह किसी राजनेता से मिल रहा है अथवा अपने किसी पुराने प्रियजन या परिजन से मिल रहा है। हर पल हर क्षण अंचल के विकास की चिंता भी नरेन्द्र को एक विशिष्ट क्षमताओं वाला विलक्षण राजनेता करार देती है।
नरेन्द्र के व्यवहारिक आत्मीयता के तो सभी कायल है चाहे वो उनकी पार्टी के कार्यकर्ता हों अथवा विपक्षी पार्टी के राजनेता। हर समय मुस्कराते रहना हर समय हंसते रहना, जैसे अपने कोई रंजो गम नहीं। हालांकि, ऐसा भी यकीनन हो नहीं सकता कि किसी को इस दुनिया में कोई रंजोगम न हो। कम से कम एक इंसान के व्यवहारिक जीवन में तो यह बिल्कुल मुमकिन नहीं। हां, आध्यात्म के क्षेत्र में अनुभूतियों की गहराइयों में ऐसी स्थिति का जिक्र जरूर आता है, जब कोई समिष्ट को अपना मान बैठता है तो उसके सुख दुख भी उसके अपने हो जाते हैं। वह उनके सुख में ही सुखी हो लेता है,और समिष्ट का दुख उसे दुखी करने लगता है। आध्यात्म क्षेत्र की यह अनुभूति शायद इस महामानव के जीवन का हिस्सा बन चुकी है, इसी आधार पर नरेन्द्र वास्तव में अपने नाम को सार्थक करते प्रतीत होते हैं।
उनकी इसी सादगी के लिये ही कदाचित कोई अनाम शायर यह लिखने को मजबूर हुआ होगा कि- 

मैंने समंदर से सीखी है पानी की पहरेदारी,
उपर से हंसते रहना और गहराई में रो लेना.


सदा अपनी पीड़ा से बढ़कर आगत की पीड़ा को समझने वाले इस इंसान का राजनीति में आना जितनी उलझी हुई पहेली है उससे कहीं अधिक हैरान करने वाली बात यह है कि, आधुनिक दौर की छल कपट वाली राजनीति में महज अपनी सादगी और उसूलों के बलबूते यह शख्स इतनी बुलंदियों तक कैसे पहुंच गया। बगैर उच्च राजनैतिक विरासत के राजनीति के शीर्ष तक पहुंचने में मुझे क्या हर किसी को उनकी काबिलियत के साथ ऐसी किसी आध्यात्मिक शक्ति का शुभाशीष होने का वहम होता है।

नरेन्द्र की आमद के साथ विपक्षी खेमे के राजनेताओं के स्वप्न दरकने लगे हैं। नरेन्द्र के आगम की आहट ने उनके मंसूबों को आहत कर दिया है। विरोधी राजनैतिक दलों के सत्ता के दरकते स्वप्न एवं आहत मंसूबे ही नेपथ्य में भारतीय जनता पार्टी के जयघोष करते प्रतीत होते हैं। आज की राजनीति में ऐसे मुसाफिर कम ही होते हैं, जो मंजिल को पाने की धुन में अपने हमसफर को भूल जाते हैं, लेकिन नरेन्द्र शायद एक ऐसे बिरले मुसाफिर हैं, जो हमेशा मंजिल को तो अपने गुमान में रखते हैं, लेकिन अपने हमसफर को छोड़कर वे अपना मुकाम भी पाना नहीं चाहते। उनकी यही खासियत आज फिर उन्हें अपने वर्षों पुराने हमसफर के साथ ले आई है, एक नये सफर के लिये, एक नई मंजिल के लिये। जाओ, नरेन्द्र जाओ, ऐसे मुसाफिरों का तो मंजिल को भी इंतजार है। मुसाफिर बनो 2013 की उस मंजिल के, जो तुम्हारे इंतजार में सुबक रही है।
सुखमय हो सफर तुम्हारा जरूरत पड़े तो अंचल का जन जन तुम्हारी राह को आसान बनाने फूल बनकर बिछने को तैयार है। यही है हमारा जनविश्वास, जिसे तुमने जीत लिया है हमारा सांसद बनकर, फिर से प्रदेश अध्यक्ष बनकर।





एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.