Type Here to Get Search Results !

भुला दिया भोपाल ने दुनिया की पहली महिला कव्वाल को

दसवीं बरसी पर स्व. शकीला बानो भोपाली की नहीं है किसी को याद
स्व. शकीला बानो सामुदायिक भवन में नहीं बन सका संग्रहालय 
 
रविंद्र सिंह, भोपाल.


दुनिया की पहली महिला कव्वाल और शायरा को भोपाल ने भुला दिया है। गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज स्व. शकीला बानो भोपाली की आज दसवीं बरसी है, लेकिन सरकार से लेकर तमाम अदबी संस्थाओं तक में कोई हलचल नहीं है।
भोपाल में 9 मई,1942 को जन्मी और पली बढ़ी शकीला बानो ने 15 दिसबंर,2002 को लंबी बीमारी के बाद मुंबई में आखिरी सांस ली थी। ट्रेजडी किंग दिलीप कुमार सहित कई नामचीन कलाकार आखिरी वक्त में शकीला बानो के पास थे। इस अजीम फनकारा ने पुरुषों के वर्चस्व को तोड़ा और कव्वाली के मंच पर अपनी उपस्थिति से तीन दशक तक सुनने वालों को बांधे रखा। उनकी आखिरी फिल्म श्रद्धांजलि थी।

भोपाल को हर पल याद किया
अपने खास अंदाज और अदायगी के जरिए सुनने वालों के दिलों पर राज करने वाली शकीला बानो भोपाली को अपने शहर से कितना लगाव था, यह इसी से साफ हो जाता है कि, उनके नाम के साथ ही भोपाली जुड़ा हुआ था। अपने जीवन काल में कई बार भोपाल में उन्होंने कव्वालियां पेश की। आखिरी कार्यक्रम रवींद्रभवन में करीब दशक भर पहले पेश किया था।

शायरी में भी नाम कमाया
शकीला बानो भोपाली को वैसे तो कव्वाली के लिए ही जाना जाता है, लेकिन वास्तव में वह एक बेहतरीन शायर भी थीं। उनकी लिखी गजलों को संग्रह ‘एक गजल और’ जबर्दस्त मकबूल और मशहूर हुआ था, जिसका प्रकाशन 1994 में हैदराबाद से हुआ था। इसके अलावा अकमल हैदराबादी की लिखी किताब ‘कव्वाली-अमीर खुसरो से शकीलाबानो तक’ का प्रकाशन 1982 में हुआ था, जिसमें कव्वाली के फन के अलावा शायर होने पर रोशनी डाली गई है।

कम्युनिटी हॉल का पुरसाने हाल नहीं
शकीला बानो के नाम पर फतेहगढ़ में बनवाए गए कम्युनिटी हॉल भी बदहाली के आलम में है। पहले यह योजना थी कि, इसी हाल में शकीला बानो की शायरी और फनकारी से जुड़ी यादों को संजोया जाएगा। उनकी डेÑस और हस्तलिपी वाली गजलों की पांडुलिपियां रखने की योजना बाद में परवान नहीं चढ़ पाई।

उनकी याद में कुछ तो किया जाए
शकीला बानो भोपाली की बरसी पर शहर के जाने माने शायर और फनकार चाहते हैं कि, उर्दू अकादमी, संस्कृति परिषद या सरकार ही कुछ करे। उनकी गाई कव्वालियों का संग्रह और उनकी फिल्मों के साथ ही अन्य मौकों पर पहनी गई डेÑस एवं जेवरों का संग्रह प्रदर्शित किया जाए। शायर महमूद रशीद का कहना है कि, शकीला बानो भोपाली की गाई सारी कव्वालियों कहीं नहीं मिलती, सिर्फ कुछ ही सुनने को मिलती है। ऐसे में एकजाई करके भोपाल में किसी भी एक जगह रखा जाना चाहिए, ताकि उनके बारे में आज की पीढ़ी को जानकारी मिल सके। शायर साजिद रिजवी भी शकीला बानो की यादों को भोपाल में सहेजने के पक्षधर हैं। उनका कहना है कि, उर्दू अकादमी या राज्य म्युजियम में शकीलाबानो की जिदंगी से जुड़ी चीजों को रखना चाहिए। अभी तो शहर भुलाए बैठा है कि, शकीलाबानो पहली शख्सियत थी, जिन्होंने भोपाल को एक नई पहचान दिलाई थी।


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.