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बात दामिनी की ....

शमिन्दर सिंह ‘शम्मी’,
शमिन्दर सिंह ‘शम्मी’, 
शाहजहांपुर, उत्तर प्रदेश.
 13 दिन तक जीवन मृत्यु के बीच संघर्ष करती चलती बस में बलात्कार की शिकार पैरामेडिकल छात्रा की अंतत: मौत हो गयी। आज सुबह तड़के सिंगापुर से आते ही उसका अंतिम संस्कार भी हो गया। कब हुआ किस समय हुआ कौन - कौन मौजूद था, यह सभी को समाचार पत्रों और न्यूज चैनलों से ज्ञात हो गया होगा। अंतिम संस्कार आनन-फानन में करवा कर केन्द्र सरकार शायद यह सोच रही हो कि अब आन्दोलनों या धरना प्रदर्शनों का भी अंतिम संस्कार के साथ ही समापन हो जायेगा। और उसकी फजीहत होना बंद हो जायेगी। शायद इसी मंशा के साथ सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह गृह राज्यमंत्री और तमाम छोटे बड़े कांग्रेस के नेता यही सोच कर एयरपोर्ट पहुंचे और घड़ियाली आंसू बहाते हुए युवती के अंतिम संस्कार में हिस्सा लिया।
मैं इंडिया टीवी के रजत शर्मा और उनकी टीम को साधुवाद देता हूं कि कल रात्रि आठ बजे उसने अपने चैनल पर दो मिनट का मौन रखकर प्रसारण रोक दिया और अपने सभी दर्शकों को भी टीवी चैनल के एंकर्स ने अपने स्थान पर खड़े होकर दो मिनट का मौन रखने का अग्रह किया, ताकि उस देश की बहादुर बच्ची को श्रद्धांजलि दी जा सके। यह वाकई एक काबिले तारीफ बात है। 
हम भारतीयों का नैसर्गिक स्वभाव है, जब तक पानी सर से ऊपर नहीं बहने लगता, तब तक एक साधु की तरह हम ध्यान मग्न रहते हैं और किसी भी प्रकार से हाथ-पैर नहीं मारते यानि तैरने का कोई प्रयत्न नहीं करते। आज आप कोई भी समाचार पत्र अथवा न्यूज चैनल खोलकर देख लें, 100 खबरों में से कम से कम 20 खबरें तो बलात्कार या छेड़छाÞड़ जैसी घटनाओं से सम्बन्धित होंगी ही। यानि अगर हम सरकारी आंकड़ों को देखें तो हर रोज पूरे देश में लगभग 800 ऐसी घटनायें होती है, जिनमें 5 से लेकर 50 साल तक की स्त्रियों/युवतियों और महिलाओं से इस प्रकार की हरकतें होती है। जिनमें कुछ तो दबंगता के चलते, कुछ पुलिस के चलते और कुछ शर्म हया के चलते लोगों के सामने पेश नहीं आती, लेकिन कुछ जो सामने आ जाती है, उनमें देश के लचर कानून के चलते अपराधियों का कुछ नहीं होेता। इसी का नतीजा है कि, घटनायें दिन पर दिन एक पैरासाइट की तरह लगातार बढ़ती जा रही है। दुस्साहस इतना हो गया है कि दामिनी जो कि युवती का काल्पनिक नाम है की घटना के बाद भी अपराधियों के हौसले बुलंद रहे और चलती बस में फिर एक बालिका से दुराचार की भावना से बलात्कार की कोशिश की गई। मानो यह अपराधियों के लिये एक नया फैशन बन गया हो। 

बात दामिनी की ....
 दामिनी के साथ जो हुआ तब समाज को लगा कि अब पानी सर से उपर आ गया। हर ओर विरोध के स्वर उठने लगे। आज हमारे बीच वह नहीं रही, लेकिन वह जाते-जाते सारे देश की महिलाओं को सोते से जगा गई। आज महिलायें इस बात की जरूरत समझने लगी है और मांग उठ गयी है कि स्त्रियों की सुरक्षा को लेकर कठोर कानून की व्यवस्था की जाए। 
सरकार को यह समझ लेना होगा कि अब इस देश की स्त्रियां अबला नहीं सबला हो गयी हैं। आज वह कलम से लेकर हथियार और साइकिल से लेकर जहाज तो क्या देश तक चला रही हैं, उनकी महत्ता को अगर कम आंका गया तो इससे ज्यादा क्रांति हो सकती है। 
सरकार को चाहिए कि वह ऐसे मामलों को निपटाने के लिए अलग कोर्ट की व्यवस्था और एक कठोर कानून को शीघ्र से शीघ्र लाये, ताकि उस युवती की आत्मा को शांति मिल सके । यही उसके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी और उस मध्यम वर्गीय परिवार को भी तभी शांति मिल सकेगी, जब उन्होंने समाज की सेवा के लिए अपनी बेटी को बलिया से दिल्ली भेजा था।

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