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एड्स कंट्रोल के बजाय थर्माकोल के खाली डिब्बों को सहेजने में लाखों का ‘खेल’

मध्यप्रदेश स्टेट एड्स कंट्रोल सोसायटी भर्राशाही के चलते आफिस के तीन कमरों को कोल्ड रुम बनाया और लाखों रुपए किराए के गोदाम में थर्माकोल के खाली डिब्बे रखवाने का ‘खेल’

ब्यूरो, भोपाल.


मध्यप्रदेश स्टेट एड्स कंट्रोल सोसायटी
खाली डिब्बों को ट्रक से ढोया गया
मध्यप्रदेश स्टेट एड्स कंट्रोल सोसायटी में मुफ्त का चंदन, घिस मेरे लल्लू वाला हाल है। पहले तो सोसायटी के आफिस में जगह की कमी होने के बाद भी एक के बाद एक तीन कमरों को कोल्ड रुम बनवाने में 40 लाख रुपए फूं के गए और अब एड्स कंट्रोल के नाम पर थर्माकोल के खाली डिब्बों का कारोबार किया जा रहा है। एचआईवी किट के खाली डिब्बों को लाखों रुपए किराए पर लिए गए गोडाउन तक ट्रकों पर लाद कर ढ़ोया जा रहा है।

संदिग्ध मरीजों में एड्स की जांच के लिए नेशनल एड्स कंट्रोल आर्गनाईजशेन (नॉको) से मध्यप्रदेश राज्य एड्स कंट्रोल सोसायटी (एमपी सैक) को एचआईवी किट मिलते हैं। यह किट ड्राई आइस (सूखी बर्फ) से सरंक्षित करके थर्माकोल के डिब्बों में रखे होते हैं। इन किटों को बाद में जिलों से आने वाले स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों को जरुरत के हिसाब से सौंप दिया जाता है। अधिकतर जिलों से आने वाले स्वास्थ्य कर्मचारी अपने साथ पोलियो बॉक्स लाते हैं, जिसमें किट ले जाते हैं। इसके बाद खाली बचे थर्माकोल के डिब्बों को सोसायटी के आफिस में कुछ दिन रखने के बाद ट्रकों के जरिए सेंट्रल लायब्रेरी के पास किराए पर लिए गए गोदाम तक भेजा जाता है। खाली डिब्बों का यह कारोबार वर्ष 2008 से चल रहा है। ऐसा ही सोमवार को खाली डिब्बों को ट्रक से ढोया गया। इसमें एक बार में 30 से 40 डिब्बे भरने के बाद ही मिनी ट्रक भर जाता था, लिहाजा दर्जनभर चक्कर ट्रक ने काटे।

डिब्बों की ढुलाई का खेल
एचआईवी किट जिलों को भेजने के बाद थर्माकोल के खाली डिब्बे बेकार ही होते हैं। कभी कभार जिलों से आने वाले कर्मचारी अपने साथ जब तापरोधी डिब्बा नहीं लाते तो उनको यही खाली थर्माकोल के डिब्बे में पैक किट दी जाती है। ऐसे में 90 प्रतिशत से ज्यादा खाली डिब्बे गोदाम में ही बंद पडे रहते हैं। इन्हीं डिब्बों की ढुलाई में सालाना लाखों रुपए खर्च होते हैं।

नाको करता है राज्यों को किट सप्लाई
नेशनल एड्स कंट्रोल आर्गनाईजशेन (नॉको), दिल्ली प्रतिवर्ष एचआईवी किट खरीदता है और फिर जरुरत के अनुसार विशेष ट्रकों के जरिए राज्यों को सप्लाई करता है। इस किट के इस्तेमाल से संदिग्ध मरीजों में एड्स की जांच की जाती है। इस किट को निर्धारित तापमान पर रखना जरुरी होता है, अन्यथा किट खराब हो जाती है। किट की एक्सपायरी डेट होती है, ऐसे में तापमान के साथ ही समयावधि का भी ध्यान रखना होता है।

लाखों खर्च करके आफिस को ही बनाया कोल्ड रुम
मध्यप्रदेश स्टेट एड्स कं ट्रोल सोसायटी (एमपी सैक) का स्टेट आफिस अरेरा हिल्स स्थित तिलहन संघ के भवन में संचालित है। जगह की कमी होने से अधिकारियों और कर्मचारियों को बैठने तक की ढंग की व्यवस्था नहीं है। इसके बाद भी एक के बाद एक तीन कमरों को कोल्ड रुम बना दिया गया, जिस पर करीब 40 लाख रुपए फूंके गए। इनमें एचआईवी किट रखे जाते हैं। हालांकि, नॉको की गाइड लाइन के अनुसार मेडिकल कॉलेज या अस्पतालों के कोल्ड रुम में ही किट रखे जाने चाहिए। भोपाल में गांधी मेडिकल कॉलेज को दरकिनार करके एमपी सैक आफिस के कमरों को कोल्ड रुम बनाया गया।


एम. गीता, प्रोजेक्ट डॉयरेक्टर, एमपी सैक
सवाल-थर्माकोल के खाली डिब्बों को लाखों रुपए महीने किराए के गोदाम में सहेजने की क्या जरुरत है?
जवाब-कभी कभार जिलों से आने वाले अपने साथ खाली डिब्बा नहीं लाते तो उनको किट ले जाने के लिए यही डिब्बे देने के लिए रखते हैं। हालांकि, आॅफिस में डिब्बे भरे होने पर मैंने ही हटाने के निर्देश दिए थे। इस मामले का परीक्षण करवाएंगे, ताकि जरुरत और परिवहन पर खर्च का खुलासा हो सके।
सवाल-आफिस में जगह की कमी होने के बाद भी तीन कमरों को कोल्ड रुम क्यों बनाया गया?
जवाब-हां, यह जरुर विसंगतिपूर्ण तथ्य है, जिसकी पूरी तरह से जांच होगी। वैसे कोल्ड रुम पहले के बने हुए है, फिर बेवजह ही लाखों रुपए खर्च करके इनके बनान और उपयोगिता का नए सिरे से परीक्षण होगा।

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