विजय यादव, मुंबई
महाराष्ट्र की राजनीति में मराठा क्षत्रप कहे जाने वाले शरद पवार ने कुछ साल पहले जिस प्रमुखता से अपने भतीजे अजीत पवार को राजनीति में प्रमोट करना शुरू किया था, उसे देखकर तो यही लगा की, छोटे पवार अजीत दादा ही शरद पवार के राजनितिक उत्तराधिकारी बनेंगे . लेकिन हाल के दिनों में उनके साथ जो कुछ भी हुआ उसे देखकर राज्य की जनता ही नहीं बल्कि निर्दिलीय विधायकों का वह गुट भी असमंजस में पड़ गया की, आखिर शरद पवार चाहते क्या है ? पवार कब क्या करेंगे ....किसे कहाँ निपटायेंगे ... यह पूर्वानुमान लगाना मुश्किल ही नहीं बल्कि असंभव भी है. हाल के दिनों में छोटे पवार पर सिंचाई घोटाले का ऐसा आरोप लगा की, उन्हें अपने उपमुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा . शुरू में लोगो को लगा की, भतीजे के बचाव में शरद पवार खुलकर विरोधियों का सामना करेंगे. इस्तीफा मंजूर नहीं किया जायेगा , लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ और छोटे पवार का "पर" कट दिया गया. उनके साथ खड़े १२ निर्दलीय विधायको का दबाव भी काम नहीं आया , जो खुलकर बयान दे रहे थे, की अगर अजीत पवार डिप्टी सीएम नहीं , तो पृथ्वीराज चव्हाण भी मुख्यमंत्री नहीं.
क्या है सिंचाई घोटाला ?
अजीत पवार पर आरोप है कि पिछली सरकार में जल संसाधन मंत्री रहते हुए उन्होंने सिंचाई से जुड़ीं ३८ परियजनाओं को अवैध तरीके से मंजूरी दी और इनके बजट मनमानी पूर्ण तरीके से बढ़ाया था. पवार ने सन् २००९ में जनवरी से लेकर अगस्त के दौरान २५ हजार करोड़ की परियोजनाओं को हड़बड़ी में क्यों मंजूरी दी, इसे लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं. इन्हीं परियोजनाओ में पश्चिमी महाराष्ट्र का बहुचर्चित कृष्णा वैली डेवलपमेंट कोर्पोरेशन भी है, जिनके तहत बांध और नहर बनाए जाने हैं.
साल, २०१२ में सिंचाई विभाग के एक्जिक्यूटिव इंजीनियर विजय पंधारे ने राज्य के सचिव को चिट्ठी लिखर कर ३५ हज़ार करोड़ के घोटाले की बात कही. जबकि महाराष्ट्र सरकार ने सिंचाई से जुड़े प्रोजेक्ट्स पर ७० हज़ार करोड़ खर्च किए हैं. इस मुद्दे पर कांग्रेस और एनसीपी में बहुत दिनों से खींचतान चल रही थी. मुख्यमंत्री पृथ्वी राज चौव्हाण ने हाल ही में एलान किया था कि उनकी सरकार सिंचाई घोटाले को लेकर श्वेत पत्र जारी करेगी. इस तरह कांग्रेस अजीत पवार पर आरोप लगने के पहले ही उन्हें घेरने की कोशिस की थी. कांग्रेस का मानना है कि पिछले १० साल में सिंचाई विभाग महज़ ०.१ फीसदी नई ज़मीन ही सिंचाई के लिए जो़ड़ पाया है, जबकि एनसीपी का कहना है कि १२ फीसदी नई ज़मीन सिंचाई के लिए जोड़ी गई.
गडकरी भी लपेटे में आए
घोटाले बाढ़ उस समय आई , जब आईएसी की कार्यकर्ता अंजलि दमानिया ने यह जानकारी सीधे मीडिया को दी. उन्होंने सिंचाई के लिए बने डैम के पानी में अकले अजीत पवार को नहीं बल्कि भाजपा के राष्ट्रिय अध्यक्ष नितिन गडकरी को भी जमकर डुबोया. पवार के साथ गडकरी पर आरोप लगा की, वह इस मामले को दबाना चाहते थे. आखिर गडकरी क्यों इस घोटाले को दबाना चाहते थे, इसकी पोल हाल ही में अरविंद केजरीवाल ने खोली .आरटीआई कार्यकर्ता अंजलि दमानिया ने गडकरी का नाम लेते हुए आरोप लगाया था , कि कारोबारी रिश्ते का हवाला देकर गडकरी ने मामले को उठाने से मना कर दिया था. जब इस तरह के आरोप गडकरी पर लगे तब उन्होंने इस आरोप को सिरे से खारिज कर दिया था. इस पुरे मामले में गडकरी का भी नाम सामने आने के बाद महाराष्ट्र के सिंचाई घोटाले को लेकर कांग्रेस और एनसीपी पर निशाना साध रही बीजेपी को तगड़ा झटका लगा है. आरटीआई कार्यकर्ता अंजलि दमानिया ने बीजेपी अध्यक्ष गडकरी पर आरोप लगाया है कि घोटाले की जानकारी देने के बावजूद ग़डकरी ने कोई कार्रवाई नहीं की, उल्टे मामले को दबा दिया.
७० हजार करोड़ के महाराष्ट्र के सिंचाई घोटाले के खुलासे में अहम भूमिका निभाने वाली अंजलि दमानिया का कहना था कि सिंचाई घोटाले के बारे में उन्होंने विपक्षी पार्टी के नेता से मदद मांगी थी लेकिन उन्होंने कोई मदद नहीं की. अंजलि दमानिया एक आरटीआई कार्यकर्ता हैं जो अरविंद केजरीवाल के संगठन इंडिया अगेंस्ट करप्शन से जुड़ी हुई हैं. अंजलि के मुताबिक उनके पिता भी आरएसएस से जुड़े थे.
अजीत पवार के बढ़ते वर्चस्व से किसे था खतरा ?
राकांपा में लगातार अजीत पवार बढ़ते वर्चस्व से राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री छगन भुजबल सबसे ज्यादा खतरा महसूस कर रहे थे . भुजबल को लग रहा थ की , अब उन्हें उप मुख्यमंत्री का पद मिलना मुश्किल है. अजीत पवार को पार्टी के भीतर ही नहीं बल्कि बाहर भी दुसरे दर्जे का नेता माना जाने लगा था. शुरूआती दौर में तो शरद पवार के लिए भी यह एक सुखद खबर थी की, दादा का वर्चस्व बढ़ रहा है, लेकिन जैसे ही उनके ऊँचे होते कद की परछाई पार्टी के अन्य नेताओ पर पड़ी उसके साथ ही समर्थकों के साथ-साथ विरोधियों की भी मजबूत खेप तैयार होने लगी. इन विरोधियों को बस एक सही मौके का इंतजार था. आखिर सिंचाई के पानी में सबने मिलकर छोटे पवार को डुबो दिया. इस बिच खबर यह भी उठी की, शरद पवार भतीजे की बजाय बेटी सुप्रिया शुले को अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहते है, सो मौका मिलते ही उन्होंने भी पार्टी नेताओं सहित कांग्रेस के साथ मिलकर अजीत पवार का पावर ख़त्म कर दिया.
चाचा- भतीजे की कुश्ती का कैसा होगा अंत ?
महाराष्ट्र में बाल ठाकरे-राज ठाकरे, वसंतदादा पाटील-विष्णुअण्णा पाटील, सुधाकरराव नाईक-वसंतराव नाईक और गोपीनाथ मुंडे-धनंजय मुंडे, ये उन चाचा-भतीजों की जोड़ियां हैं जिन्होंने रिश्तों की राजनीति में एक-दूसरे को पटखनी दी है। ताजा जंग चाचा ( शरद पावर ) और भतीजे ( अजीत पावर ) के बीच चल रहा है। कहा जाता है कि अजीत पवार ने यह इस्तीफा अपने काका शरद पवार के कहने पर ही दिया है, लेकिन अजित के इस्तीफे के बाद महाराष्ट्र की राजनीति में जो बवाल मचा है, वह क्या गुल खिलाएगा, यह आने वाले दिनों में स्पष्ट हो जाएगा। इस सिंचाई घोटाले के छींटे अजीत पवार ही नहीं बल्कि भाजपा अध्यक्ष नितीन गडकरी और इंदौर के ख्यात संत भय्यू महाराज पर भी पड़े हैं। काका शरद पवार ने बाद में बड़ी चतुराई से ट्रम्प कार्ड फेंकते हुए कहा कि इन योजनाओं की मंजूरी विधान परिषद में तत्कालीन विपक्ष के नेता नितीन गडकरी की मांग के बाद दी गई थी।
निगाहें 7 रेसकोर्स पर
बात करते हैं मराठा क्षत्रप शरद पवार की, जिन्होंने अपने सेहरे तमाम बोर्ड, मंडल, कमेटियां बांध रखी हैं। सब जानते हैं कि पिछले एक दशक से उनकी नजरें प्रधानमंत्री पद पर गड़ी हुई हैं। उनके हाथ और दिमाग केंद्र की सत्ता को डगमगाने के लिए चलते रहते हैं और पैर ७ रेसकोर्स रोड की तरफ डग भरने को उतावले हैं। शरद पवार की राजनीति में एक बागी, विद्रोही छवि देखने को मिलती है। भूतकाल खंगाले तो १९७७ में आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी की अपमानजनक हार के बाद वे १९७८ में कांग्रेस से अलग हो गए थे। आठ साल तक कांग्रेस से बाहर रहने के बाद १९८६ में वे पुन: कांग्रेस में शामिल हो गए थे। उसके बाद १९९९ में फिर कांग्रेस छोड़कर खुद अपनी पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस की स्थापना की थी। पवार ने तब कांग्रेस छोड़ने के लिए सोनिया गांधी के विदेशी मूल को मुद्दा बनाया था। तब शरद पवार को उम्मीद थी कि सोनिया के विदेशी मूल का मुद्दा जोर पकड़ जाएगा, जनता कांग्रेस को नकार देगी और ऐसी स्थिति में लोकसभा त्रिशंकु होगी, तो प्रधानमंत्री पद के लिए वे प्रबल दावेदार होंगे, किंतु उनके दुर्भाग्य से ऐसा कुछ नहीं हुआ।
अर्जुनसिंह ने चेताया था राजीव गांधी को
कांग्रेस के दिग्गज नेता स्व. अर्जुनसिंह शरद पवार को भरोसमंद नहीं मानते थे। अर्जुनसिंह ने अपनी आत्मकथा ‘ए ग्रेन ऑफ सेंड इन द ऑवरग्लास ऑफ टाईम ’में यह बात स्पष्ट रूप से कही है। वे जानने को उत्सुक थे कि शरद पवार का कांग्रेस से कब-कब मोहभंग होगा। अपनी आत्मकथा में अर्जुनसिंह ने लिखा है कि उन्होंने १९८६ में राजीव गांधी को चेताया था कि पवार का इतिहास किसी भी प्रकार से प्रेरणादायी नहीं है और वे किसी भी समय पार्टी से विद्रोह कर सकते हैं।
उसके बाद ही जब पवार ने राष्ट्रवादी कांग्रेस की स्थापना की थी तब भी अर्जुनसिंह का साफ मानना था कि पवार की यह आखिरी हरकत नहीं है और वे किसी न किसी रूप में कांग्रेस के साथ सौदेबाजी करके ही दम लेंगे। यूं देखा जाए तो कांग्रेस भी कम नहीं है। राष्ट्रवादी कांग्रेस के साथ पिछले १३ सालों से चल रहे इस गठजोड़ में शह और मात का खेल चलता ही आ रहा है। कांग्रेस से शरद पवार के नाराज होने के तमाम मौके कांग्रेस ने ही दिए हैं। महाराष्ट्र में पृथ्वीराज चव्हाण के गठबंधन की सरकार में वित्त और गृह जैसे महत्वपूर्ण विभागों पर जबसे कांग्रेस ने दावा ठोका है, तबसे पवार एंड कंपनी गुस्साई है।
बात यहीं नहीं रुकी, २०११ में उन्होंने पर्यावरण नियमों के उल्लंघन के लिए लवासा सिटी पर केस दाखिल करने के लिए हरी झंडी दे दी। पुणो शहर के पास एक पहाड़ी पर विकसित हो रहा यह शहर शरद पवार की कल्पना का स्वरूप है। पिछले साल ही रिजर्व बैंक ने महाराष्ट्र स्टेट को-ऑपरेटिव बैंक के नियामक मंडल को भंग कर दिया था। इस बैंक पर पिछले १७ सालों से अजित पवार का नियंत्रण था। चव्हाण ने बैंक के नियामक मंडल में अपनी पसंद के अधिकारियों को बैठा दिया, जिस कारण भी अजित पवार और उनके समर्थक भड़के हुए थे। शह और मात के इस खेल को चव्हाण ने पिछली ४ मई को यह घोषणा कर और भड़का दिया कि पिछले १० सालों में राज्य द्वारा सिंचाई पर किए गए खर्च पर श्वेत-पत्र जाहिर करेंगे।
भाजपा से हाथ मिलाने की चाल
इस सबके बावजूद शरद पवार महाराष्ट्र की राजनीति के दिग्गज खिलाड़ी हैं। कब किससे हाथ मिलाना, दोस्ती गांठना और कब किसकी पीठ में खंजर भोंकना, किसे कितना और कैसे दबाना-शरद पवार यह भलीभांति जानते हैं। किसे लालबत्ती से नवाजना, किससे छीनना आदि तिकड़मों में उन्हें महारत हासिल है। उनके अब तक के राजनीतिक कॅरियर में दृष्टिगोचर हुई तमाम पैंतरेबाजी को देखकर ऐसा लगता है कि वे राजनीति शास्त्र के किसी रिसर्च स्कॉलर के लिए एक बढ़िया विषय हो सकते हैं। यूपीए-२ में भी उन्होंने सरकार में सेकेंड पोजीशन के लिए दबाव बनाया था और उस कारण कांग्रेस में थोड़े दिनों तक ऊहापोह की स्थिति निर्मित हो गई थी।
पवार की राजनीतिक कुंडली और इतिहास को देखते हुए कांग्रेस आज भी इस बात को लेकर चिंतित हैं कि सन् २०१४ में होने वाले आम चुनाव में पवार भाजपा के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष गठबंधन कर सकते हैं और कांग्रेस की यह चिंता अब पवार की चिंता बन गई है, क्योंकि सिंचाई घोटाले में भतीजे अजीत पर आरोप लगने से उनकी और पार्टी की ही किरकिरी हुई है। राष्ट्रवादी नेताओं के इस आरोप में दम लगता है कि कांग्रेस उनके नेताओं को सुनियोजित रूप से फंसाने में जुटी है, किंतु सवाल ये है कि आखिर एनसीपी नेता भी कहां पाक-साफ हैं।