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३३ हजार करोड़ की लूट

सरकारी दस्तावेजों में 6000 बिल्डिंगों में नियम विपरीत निर्माण
भवन माफियाओं ने अकेले ही नहीं डकारे,

अफसरों, राजनीतिज्ञों और मीडिया हाउसेस भी हिस्सेदार
नामी-गिरामी तस्कर भी बने बिल्डर की आड़ में सफेदपोश
जितेंद्र व्यास, इंदौर 

देश की मिनी मुम्बई जानी पहचानी तो गई थी कपड़ा मिलों को लेकर लेकिन प्रदेश के सबसे तेज बढ़ते शहर इंदौर ने अवैध निर्माण के मामले में बिग मुम्बई को भी पछाड़ दिया। महज 29 सालों में इंदौर का बिल्डर माफिया 33 हजार करोड़ की लूट मारी कर भोले-भाले मकान मालिकों को अवैध निर्माण टिका गया। अवैध निर्माणों को लेकर पिछले 20 वर्षों से अपनी मुहिम चला रहे भाजपा के पूर्व पार्षद रहे परमानंद सिसौदिया भ्रष्ट प्रशासन के चलते न्यायालयीन आदेश के बाद भी अवैध निर्माण तो नहीं हटवा पाए, लेकिन भविष्य की लड़ाई लडऩे के लिए अपना घरबार बेचने पर मजबूर हो गए। विभिन्न सरकारी स्रोतों से वैधानिक तरीके से जुटाए गए दस्तावेजों के आधार पर सिसौदिया का दावा हैं कि इंदौर शहर की लगभग 6 हजार बिल्डिंगों में नक्शों के विपरीत निर्माण भी हुआ हैं और बिल्डरों ने इसे बेच भी डाला हैं। यह अवैध निर्माण कई बिल्डिंगों में नक्शे में दी गई स्वीकृति के
बराबर है।

तैंतीस हजार करोड़ की अवैध लूट सिर्फ बिल्डरों ने की हैं ऐसा भी नहीं हैं। इस लूट के हिस्सेदार इंदौर में पदस्थ रहे आला अफसर-सत्ताधारी और विपक्ष के बड़े नेता भी रहे हैं। मीडिया हाउसेस की भूमिका भी कम रोचक नहीं रही हैं। यहां तक की बिल्डिंग कारोबार में मोटा मुनाफा देखकर शहर के कई नामी-गिरामी तस्कर भी इस धंधे में कूद पड़े। 80 के दशक में इंदौर के विकास ने रफ्तार तब पकड़ी जब पीथमपुर को औद्योगिक क्षेत्र के रूप में विस्तार मिलना शुरू हुआ। तब तक शहर में भू-माफिया ही खासतौर पर सक्रिय हुआ करता था। रेल, बस, हवाई यातायात की सुलभता ने पीथमपुर में स्थापित होने वाले उद्योगों के संचालकों को इंदौर शहर में अपने कार्यालय खोलने पर मजबूर कर दिया। इसी दौरान देश की बड़ी-बड़ी कम्पनियां के क्षेत्रीय कार्यालय भी इंदौर में खोले जाने की शुरुआत हुई। राष्ट्रीयकृत बैंकों ने अपनी शाखाएं खोलने में रुचि दिखाना शुरू की। तो शहर के भू-माफियाओं को बिल्डर्स के धंधे में उतरने का शौक चर्राया। इसी दौरान फ्लैट संस्कृति भी तेजी से पनपती जा रही थी। पीथमपुर की नजदीकी का लाभ उठाकर सबसे पहले खातीवाला टैंक में बहुमंजिला भवनों का निर्माण तेजी से हुआ। शहर के मध्य क्षेत्र खासकर राजबाड़ा से पलासिया के सटे क्षेत्रों में बहुमंजिला भवनों का निर्माण व्यावसायिक उद्देश्य को लेकर किया जाने लगा। 1500 स्क्वेयर फीट का प्लाट दूरदराज इलाकों में महंगा था। भोले-भाले निवेशकों ने समय की आवश्यकता को देखकर फ्लैट खरीदना शुरू कर दिए। एकदम से शहर का घनत्व बढ़ गया और जल-मल की समस्याओं के साथ-साथ पार्किंग समस्या ने अपना रूप दिखाना शुरू कर दिया। इस सबसे प्रशासन को बेखबर देखकर भवन निर्माताओं ने अवैध निर्माण का सिलसिला शुरू कर दिया। अवैध निर्माण की सबसे पहली बिल्डिंग फडऩीस कॉम्प्लेक्स चिह्नित की गई। इसके बाद सीता बिल्डिंग, दवा बाजार, इंडस्ट्री हाउस, चेतक सेंटर अवैध निर्माण का सबसे बड़ा उदाहरण बन गया। 1984 में जब इन बिल्डिंगों के अवैध निर्माण को लेकर हल्ला मचना शुरू हुआ तब नगर निगम में भाजपा की परिषद हुआ करती थी। आरोपों की पीड़ा से बचने और अवैध बिल्डिंगों को बचाने भवन माफियाओं ने जनकार्य विभाग के नक्शा रिकॉर्ड रूम में आग लगा दी, जो आज तक रहस्य बनी हुई हैं।

इसके बाद तो भवन माफियाओं ने न सिर्फ अपनी रफ्तार तेज की बल्कि इस घटना के पूर्व स्वीकृत नक्शों से बनी बिल्डिंगों पर भी अवैध निर्माण कर डाले। यही वो दौर था जब अवैध धन का निवेश अवैध निर्माणों और अवैध कालोनियों में किया जाने लगा। देश के हृदय प्रदेश की औद्योगिक नगरी में भ्रष्ट शासन-प्रशासन और जांच एजेंसियों के अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों एवं धनपतियों का गठबंधन मजबूत हो गया। आज इस माफिया के चलते लगभग 6000 बिल्डिंगों में अवैध निर्माण और 600 अवैध कालोनियां इंदौर शहर के चारों कोनों में पनप गई हैं। अब यह भ्रष्ट गठबंधन सुनियोजित षड्यंत्र के तहत शहर की जमीनों के दाम बढ़ाने-गिराने का खेल नित रोज रचता है। कभी भविष्य में स्थापित होने वाली सरकारी योजनाओं का खुलासा करवाकर तो कभी औद्योगिक निवेश के नाम पर राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय चेहरों को बुलाकर आमजन को भरमाया जाता है। जिला प्रशासन ने भी शहर में चल रही आधी-अधूरी योजनाओं के खूबसूरत कैटलाग बनवा रखे हैं जो ख्यातनाम चेहरों को भरमाने के लिए काफी होते हैं। पिछले कई सालों से करोड़ों-अरबों रुपए के औद्योगिक निवेश से इंदौर के सुनहरे भविष्य का सब्जबाग दिखाया जा रहा है, लेकिन हकीकत में ऐसा कोई बड़ा औद्योगिक निवेश अभी तक स्थापित नहीं हो पाया है। बस पहले से जमीनों पर कब्जा करें भूमाफिया और भवन माफिया इस सब्जबाग के तत्काल बाद अपनी एक खूबसूरत और हाई क्लास बिल्डिंग या कॉलोनी का प्रोजेक्ट लांच कर देते हैं और चांदी की फसल काट लेते हैं। आम निवेशक भी एक बार ठगे जाने के बाद बार-बार ठगे जाने के लिए अपने दिल और दिमाग के द्वार खोले बैठा है, वरना क्या मजाल कि इस तरह का माफिया पनप पाता। सिसोदिया बताते हैं कि 96 में शहर के 427 बहुमंजिला भवनों की कंपाउंडिंग इंदौर हाईकोर्ट ने निरस्त की थी, लेकिन इन बिल्डिंग के अवैध निर्माण आज तक यथावत हैं। 95 से 2000 के बीच बनी लगभग 170 इमारतों के अवैध निर्माण को लेकर भी वे हाईकोर्ट गए थे। हाईकोर्ट ने इन अवैध निर्माण को हटाये जाने के लिए इंदौर नगर निगम को सक्षम प्राधिकरण बताया था, लेकिन यह निर्माण जब 2007 तक नहीं हटा तो सिसोदिया अपील लेकर सुप्रीमकोर्ट चले गए। विगत आठ-दस सालों से अवैध निर्माणों पर कोई कार्यवाही होते न देख भूमाफियाओं के हौंसले बुलंद हैं और वे हर साल लगभग 200 बिल्डिंगों में अवैध निर्माण कर रहे हैं।

पचास लाख गंवाए
इंदौर का अवैध निर्माण और अवैध $कॉलोनाइजेशन अरबों के वारेन्यारे कर देता है। वहीं इस आदमी का जुनून देखकर जहां बिल्डर कांप जाते है वहीं परिवारजन और मित्र विपरीत परिस्थिति के बाद भी सम्मान के साथ खड़े नजर आते है। 1994 में इंदौर नगर निगम का पार्षद चुने जाने के बाद स्वास्थ्य समिति के अध्यक्ष चुने गए परमानंद सिसौदिया ने तत्कालीन महापौर मधुकर वर्मा की अध्यक्षता में बनी अपील कमेटी के सभी सदस्य सुरेश मिंडा, विनय वाकलीवाल, फरीदा रऊफ, कुलविंदर सिंह गिल को इंदौर नगर के अवैध निर्माणों को लेकर जोरदार तरीके से घेर डाला। यह मामला लोकायुक्त में गलत तरीके से की गई कंपाउंडिंग को लेकर दो साल की जांच के पश्चात 415 प्रकरणों में 8 करोड़ के भ्रष्टाचार को लेकर था। हालांकि इंदौर शहर के अवैध निर्माणों के खिलाफ सिसौदिया 1990 से ही लड़ाई लड़ रहे थे।

सिसौदिया के परिजन बताते है कि जनहित के इस मुद्दे को लेकर अभी तक परमानंद सिसौदिया विभिन्न स्तरों पर की गई शिकायतों एवं उनके पत्राचारों के लिए टायपिंग और फोटोकॉपी पर लगभग 35 लाख रुपए खर्च कर चुके है। इसी के साथ ही कोर्ट में लगभग 15 लाख रुपए की फीस चुकाई गई होगी। इस बड़े मुद्दे के जुनून को देखकर माननीय इंदौर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश कई अवसरों पर सिसौदिया को यह फटकार भी लगा चुके है कि तुम्हें शहर की हर बिल्डिंग में अवैध निर्माण नजर आता है, लेकिन उन्हीं न्यायाधीशों ने जनहित के इस मुद्दे पर सिसौदिया के एक प्रकरण में विरोधी पक्षकारों को सम्मन्स तामील कराने के लिए सार्वजनिक नोटिस जारी करते हुए अखबारों में इश्तहार का प्रकाशन भी करवाया। परिवार के लोगों का कहना है कि सिसौदिया को हुई मानसिक यातना और इस लड़ाई में दिए गए अमूल्य समय की कीमत तो लगाई ही नहीं जा सकती। थक-हारकर भविष्य की लंबी कानूनी लड़ाई लडऩे के लिए सिसौदिया ने अपना मकान बेच डाला, लेकिन परिवारजन इस बात पर गर्व करते है कि जनहित के इस चर्चित मुद्दे पर करोड़ों रुपए के भ्रष्टाचार को लेकर खुलासे करते रहे सिसौदिया पर आज तक एक रुपए का भ्रष्टाचार का आरोप भी कोई नहीं लगा पाया है।


सीता श्री रेसीडेंसी
निर्माण स्थल: खसरा क्र. 179/1/2 व अन्य, कालानी नगर मेन रोड स्थित मोहता बाग की जमीन पर, आर्किटेक्ट : अक्षय आर. बज, अनुज्ञाधारी : जीजी रिएल इस्टेट प्रा.लि., दिनेश अग्रवाल, स्वीकृति क्रमांक : 25911 दिनांक 15.3.2010, भूखण्ड साइज : 90810.52 वर्गफीट, भवन निर्माण स्वीकृति : 1.5 एफएआर के मान से 18 मीटर ऊंचाई तक, 1,80,538 वर्गफीट, मौके पर निर्माण : 2,48,483 वर्गफीट, अवैध निर्माण: 67945 वर्गफीट (स्वीकृति के विपरीत), बाजार दर: 3500 रु. प्रति वर्गफीट, अवैध निर्माण बेचकर की गई लूट : 23 करोड़ 70 लाख।

महालक्ष्मी
निर्माण स्थल : 28 स्नेह नगर, होजी दादी पुल के पास, आर्किटेक्ट : कैलाश तोतला एसोसिएट, अनुज्ञाधारी : लक्ष्मीचंद सौमय्या एवं कपिल माधवदास कालरा, स्वीकृति क्रमांक: 29518, दिनांक : 31.12.2010, भूखण्ड साईज : 19145 वर्गफीट, भवन निर्माण : 1.5 एफ.ए.आर. के मान से, स्वीकृति: 31589 वर्गफीट, मौके पर निर्माण : 68504 वर्गफीट, अवैध निर्माण : 36915 वर्गफीट, बाजार भाव: 2800 रु. प्रति वर्गफीट, अवैध निर्माण से लूट : 1,03,59,200 रुपए।


ऑरेंज कंट्री
३३ हजार करोड़ की अवैध लूट
निर्माण स्थल : त्रिवेणी कॉलोनी, आर्किटेक्ट : संजय श्रीवास्तव, अनुज्ञाधारी: मुरलीधर गिरीमल व रवि सोमानी, स्वीकृति क्रमांक: 12794, दिनांक : 5.5.2007, भूखंड साईज: 66516.82 वर्गफीट, निर्माण स्वीकृति: 1.5 एफएआर के मान से 117595 वर्गफीट की स्वीकृति, मौके पर निर्माण: 2,26,634 वर्गफीट, 
अवैध निर्माण: 109119 वर्गफीट, बाजार दर : 3000 रु. प्रति वर्गफीट, अवैध निर्माण से लूट की राशि: 3,27,35,700 रुपए।


33 हजार करोड़ का गणित
इंदौर शहर में बनने वाली हर बहुमंजिला इमारत में लगभग तीस से लेकर 40 प्रतिशत तक अवैध निर्माण किया जाता है। इसमें पार्किँग के स्थान पर फ्लैट और दुकान बना देना, एमओएस के स्थान पर निर्माण कर देना, पेंट हाउस के नाम पर फ्लैट बना देना, कई स्थानों पर अवैध मंजिल तान देना शामिल हैं। यह अवैध निर्माण भी बाजार दर पर बेचा जाता है, जो औसतन 2200 रुपए के लगभग प्रति वर्गफीट बेचा जाता है। वास्तुविद के अनुसार इन भवनों में जिस तरह का निर्माण किया जा रहा है उसकी औसतन लागत लगभग 800-1000 रुपए प्रति वर्गफीट आती है। श्री सिसोदिया के पास उपलब्ध दस्तावेजों में लगभग १00 बिल्डिंंगों में हुए अवैध निर्माण की विधिवत जानकारी है, जिसमें हुई अवैध लूट का हिस्सा ही लगभग 500 करोड़ के आसपास बैठ रहा है। इस जानकारी में निर्मित भवन, निर्माणकर्ता, निर्माण अनुज्ञा, स्वीकृत निर्माण, स्वीकृत नक्शे के विपरीत किए गए निर्माण और बेचे गए अवैध निर्माण से कमाए गए धन की जानकारी है। उदाहरण के तौर पर चार बिल्डिंगों के संपूर्ण जानकारी समाचार के साथ दिए गए बॉक्सों में पढ़ी जा सकती है।

मास्टर ब्लास्टर
इंदौर शहर की जनता आज भी उस छोटी कदकाठी के कलेक्टर मनोज श्रीवास्तव को याद करती है, जिसने इंदौर शहर में भू एवं भवन माफियाओं के खिलाफ खुली जंग का ऐलान कर अपने कार्यकाल में माफियाओं को नेस्तनाबूद कर डाला। पहली बार इंदौर शहर में किसी प्रकार अधिकारी ने प्रदेश के सबसे ताकतवर माफिया के खिलाफ वक्रदृष्टि दिखाई थी। मनोज श्रीवास्तव के नाम एक ही कार्यकाल में सर्वाधिक अवैध बिल्डिंग तोडऩे का रिकॉर्ड भी दर्ज किया जा सकता है। मनोज श्रीवास्तव के आने से पूर्व इंदौर शहर में भू एवं भवन माफियाओं के हौसले इतने बुलंद थे कि सरकारी जमीन पर कब्जा लगभग सात मंजिला अवैध भवन का निर्माण कर डाला। इंदौर नगर निगम ने उस बिल्डिंग का नक्शा भी पास किया था यह देखें बिना कि नजूल की जमीन बिल्डिंग के हाथों कब चली गई। एक दिन सुबह छह बजे तत्कालीन कलेक्टर मनोज श्रीवास्तव दलबल के साथ एलआईजी चौराहे स्थित राज टॉवर पर जा पहुंचे और डायनामाइट लगाकर अवैध बिल्डिंग को जमींदोज कर दिया।

नपती फीते की दर
भारतीय सिनेमा के सुपर स्टार अमिताभ बच्चन अभिनीत फिल्म कालिया का एक बहुचर्चित संवाद ‘हां तो बच्चों, मुख्तार सिंह का नाम सुना है तुमने… मुख्तार सिंह वह आदमी है जिससे शहर की पब्लिक भी कांपती है और पुलिस भी… बाजार से निकल गया तो ऐसा लगता है कफ्र्यू लग गया हो। बाजार खाली पड़ा था, दुकानें बंद हो चुकी थीं।… फिर क्या उसकी मौत आयी थी जो हमसे उलझ गया। बाजार से टैक्स वसूलता था, दुकानों से चंदा लेता था। हमसे भी टैक्स मांगने लगा। हमने कहा किस बात का टैक्स? कहने लगा- सड़क पर चलने का टैक्स। तुम्हारी टांगें लंबी, सड़क ज्यादा घिसती।Ó
इस संवाद से मिलती-जुलती घटना है इंदौर शहर की, जहां अगर नगर निगम का वरिष्ठ अधिकारी अपने हाथ में मेजरमेंट टेप लेकर सड़क पर उतर जाए और कुछ बिल्डिंगों को गौर से देख लें तो शाम तक करोड़ों रुपए अपने घर ले जा सकता है। हालिया उदाहरण है साथ के चित्र में दी गई त्रिवेणी कालोनी स्थित ऑरेंज कंट्री बिल्डिंग का। हाल ही में पदस्थ रहे निगमायुक्त योगेंद्र शर्मा ने अपने स्थानांतरण पूर्व यहां रिम्हूवल गैंग भेज दी थी। 2-3 घंटे की मशक्कत के बाद अतिक्रमण हटाओ दस्ते ने सिर्फ बाउंड्रीवॉल तोड़ी और वापस चली गई। सूत्रों के अनुसार इस दौरान तीन करोड़ रुपये में मामला रफा-दफा किए जाने की खबर है। चार दिन बाद योगेंद्र शर्मा सागर कलेक्टर बना दिए गए।

भवन निर्माण में बांटी जानी वाली रिश्वत को लेकर सूत्रों का कहना है कि एक भवन के निर्माण पर आने वाली लागत का लगभग तीस प्रतिशत हिस्सा सिर्फ सरकारी अधिकारियों को नजराने बतौर दिया जाता है। इस हिस्से में नगर एवं ग्राम निवेश विभाग, नजूल विभाग, इंदौर नगर निगम, इंदौर विकास प्राधिकरण, उपपंजीयक विभाग एवं अनेकों सरकारी जांच एजेंसियां हैं। सूत्रों का दावा है कि लगभग छह हजार करोड़ रुपए अभी तक रिश्वत बतौर बांटे गए होंगे जिसका मोटा हिस्सा राजधानी में बैठे आला अफसरों एवं राजनेताओं को भी दिया गया है। इस अवैध निर्माण में बांटी जाने वाली रिश्वत का एक मोटा हिस्सा बैंकों के उन अधिकारियों और कर्मचारियों को भी जाता है जो संबंधित बिल्डिंग के ऋण प्रकरण को स्वीकृत करते है। अगर विगत वर्षों में बैंकों पर पड़े सीबीआई छापे की तह में जाए तो यह बात सत्य साबित होती है कि इंदौर के भवन माफियाओं को पनपाने में बैंकों का भी बड़ा हाथ रहा है। इंदौर का पुलिस विभाग भी इस मामले में पीछे नहीं रहा। करोड़ों की जमीन कोडिय़ों के दाम खरीदने के लिए बिल्डर गुंडागर्दी का सहारा लेते है और उन गुंडों को संरक्षण देने के एवज में पुलिस मोटी कीमत वसूलती है।

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