सालाना 32 करोड़ के रैबीज इंजेक्शन खरीदी का बजट
वर्ष 2009 से कमीशन के चक्कर में नहीं हो रही खरीदी
एंटी रैबीज वैक्सीन का असर होता है 21 दिन के बाद
इम्यूनो ग्लोब्युलिन के बजाय लगाई जा रही है एआरवी
ब्यूरो, भोपाल
कुत्ता काटने के बाद मरीजों की जान उनकी अपनी प्रतिरोधी क्षमता, देसी इलाज और भगवान भरोसे ही बच रही है। कुत्ता काटने के बाद रैबीज के संक्रमण से बचाने के लिए इम्यूनो ग्लोब्युलिन का इंजेक्शन लगाने के बजाय एंटी रैबीज वैक्सीन लगाई जा रही है। स्वास्थ्य विभाग ने बीते तीन साल से इंजेक्शन खरीदी पर ‘सुविधा शुल्क’ के चक्कर में अघोषित रोक लगा रखी है।
कुत्ता काटने के बाद सरकारी अस्पतालों तक पहुंचने वालों को एंटी रैबीज वैक्सीन (एआरवी) लगाई जा रही है। इसके असर से मानव शरीर में 21 दिन के बाद ही एंटी बॉडी बनते हैं, जिनके नतीजे में रैबीज से लड़ने और बचाव की प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है। हालांकि, कुत्ता काटने के 7 दिन बाद से ही रैबीज का फैलाव शुरु हो जाता है। ऐसे में मरीजों की जान बचाने के लिए इम्यूनो ग्लोब्युलिन का इंजेक्शन लगाया जाना चाहिए, लेकिन वर्ष 2009 से टेंडर होने के बाद भी इसकी खरीदी रुकी पड़ी है।
कमीशन के अड़ंगे से रुकी खरीद
इम्यूनो ग्लोब्युलिन इंजेक्शन खरीदने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने 2009 में टेंडर जारी किए थे। सूत्रों के अनुसार इसके बाद फाइनल की गई एजेंसियों से करीब 32 करोड़ रुपए के खरीदी आर्डर जारी करने से पूर्व तत्कालीन संचालक , स्वास्थ्य अमरनाथ मित्तल के बीच कई दौर की वार्ता हुई थी। सूत्रों का दावा है कि, 15 प्रतिशत मुनाफे में 8 प्रतिशत हिस्सा देने के बजाय एजेंसी ने सिर्फ 3 प्रतिशत की पेशकश की थी। इसके बाद अचानक ही खरीदी आॅर्डर जारी होने से पहले ही फाइल ठंडे बस्ते में दबा दी गई। तभी से बिना कोई कारण दर्शाए इम्यूनो ग्लोब्युलिन इंजेक्शन की खरीदी स्वास्थ्य विभाग नहीं कर रहा है।
डब्ल्यूएचओ की गाइड लाइन
डब्ल्यूएचओ की गाइड लाइन के अनुसार अगर ग्रेड-3 डाग बाइट है तो रैबीज का इंफेक्शन माना जाएगा। ऐसे में इम्यूनो ग्लोब्युलिन का इंजेक्शन लगाया जाना जरुरी होगा। ग्रेड-3 के तहत अगर कुत्ते के दांत मानव शरीर में घुस जाते हैं या काटने के नतीजे में खून निकल आता है तो रैबीज का संक्रमण अवश्यंभावी होगा। गौरतलब होगा कि, सरकारी अस्प्तालों तक पहुंचने वाले कुत्ता काटने के मरीजों में 60 प्रतिशत ग्रेड-3 होते हैं। ऐसे मरीजों को इम्यूनो ग्लोब्युलिन इंजेक्शन दिया जाना अपरिहार्य होता है, जोकि 15 किलो बॉडी वेट होने पर 7 हजार रुपए का इंजेक्शन लगेगा। ऐसे में औसतन 60 किलो के व्यक्ति के लिए 28 हजार रुपए के इंजेक्शन के साथ ही एआरवी भी लगाई जाएगी, जिसकी कीमत 300 रुपए प्रति एंपुल होती है।
हर साल डेढ़ लाख मरीज
प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों और जिला अस्पतालों में सालाना डेढ़ लाख से ज्यादा कुत्ते काटने के मरीज पहुंचते हैं। ऐसे में निजी अस्पतालों और ग्रामीण क्षेत्रों के मरीजों का आंकलन नहीं हो पाता है। हमीदिया अस्पताल में रोजाना 32 से 37 मरीज पहुंचते और सालभर में 5 हजार से ज्यादा मरीज आते हैं। अस्पताल अधीक्षक डॉ. दिनेश कुमार पाल के अनुसार इनमें 60 प्रतिशत ग्रेड-3 के होते हैं। चूंकि, मेडिकल कॉलेज स्वशासी हैं तो जरुरत पड़ने पर इम्यूनो ग्लोब्युलिन इंजेक्शन की लोकल परचेजिंग कर ली जाती है। दूसरी ओर, जिला अस्पतालों में हालात चिंताजनक हैं। जिला जेपी अस्पताल अधीक्षक डॉ. वीणा सिन्हा के अनुसार रोजाना 30 से 40 मरीज आते हैं, जिनको एआरवी ही लगाई जाती है।
----------------------
डॉ. बीएस ओहरी, संयुक्त संचालक (औषधि) से सीधी बात
-डब्ल्यूएचओ के अनुसार ग्रेड-3 बाइट में इम्यूनो ग्लोब्युलिन इंजेक्शन जरुरी होता है?
-डॉग बाइट के 99 प्रतिशत मामलों में इम्यूनो ग्लोब्युलिन इंजेक्शन लगाने की जरुरत ही नहीं होती। ऐसे में एंटी रैबीज वैक्सीन से ही काम चल रहा है।
-इम्यूनो ग्लोब्युलिन के बजाय एंटी रैबीज क्यों खरीदी जा रही है?
-वैसे तो इम्यूनो ग्लोब्युलिन परचेंजिंग का एक पुराना कांट्रैक्ट 2009 का है, लेकिन खरीदी नहीं हो सकी थी। खरीदी क्यों नहीं हो पाई, तो फिलहाल मुझे कुछ नहीं कहना है।
कमीशनखोरी के चक्कर में तीन साल से रुकी रैबीज इंजेक्शन की खरीदी
अक्टूबर 18, 2012
0
Tags